वर्तमान भारतीय समाज में नारी चेतना : चुनौतियां और संभावनाएं

Author(s): Yogendra Sharma

Publication #: 2203012

Date of Publication: 20.05.2022

Country: India

Pages: 44-46

Published In: Volume 8 Issue 3 May-2022

Abstract

स्त्री-पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक है। एक के भी अभाव में सृष्टि को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है सृष्टि निर्माण में जब दोनों का योगदान बराबर है तो उनका स्तर भी समान होना चाहिए। यह धारणा मध्यकालीन सामंती मानसिकता में विस्मृत कर दी गयी थी। उस समय नारी को सूर्यपश्या नारी स्वातंत्र्य का स्वप्न तभी साकार हो सकता बनाकर रख दिया गया। उससे सभी अधिकार छीन है]जब नारी आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो । पूँजी ऐसी लिए गए। मध्यकालीन साहित्य की और यदि शक्ति है जो व्यक्ति के सम्मान और स्वतंत्रता पुरुष के समान शक्तिशाली बने और पुरुष नारी के समान कोमल भावनाओं से युक्त हो तभी श्रेष्ठ और पूर्णता की स्थिति हो सकती है

पितृसत्तात्मक समाज में नारी की स्थिति दोयम दर्जे की रही है। ऐसे समाज में नारी-स्वातंत्र्य] नारी अधिकार का प्रश्न कोई अर्थ नहीं रखता जब तक नारी स्वयं आत्मनिर्भर नहीं बनती। आत्मनिर्भर नारी ही समाज के दोहरे मापदंड से संघर्ष करके अपने स्वत्व की स्थापना कर सकती है। प्रस्तुत शोध लेख में भारतीय कथा साहित्य के माध्यम से नारी चेतना के इन्हीं आयामों की पड़ताल की गई है।

Keywords: रूढ़ियों, विसंगतियाँ, विरुपता, जिजीविषा, मध्यकालीन सामंती मानसिकता, असूर्यपश्या, हैल्पिंग हैंड (Helping Hand), अर्निंग हैंड (Earning Hand), संपत्ति में अधिकार

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