भारत में महिला सशक्तिकरण: सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
Author(s): Mohan Singh
Publication #: 2507014
Date of Publication: 04.07.2025
Country: India
Pages: 1-4
Published In: Volume 11 Issue 4 July-2025
Abstract
भारत जैसे विविधता से भरे देश में महिला सशक्तिकरण एक अत्यंत जटिल, बहुआयामी और ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है। भारतीय समाज परंपरागत रूप से एक पितृसत्तात्मक संरचना में ढला हुआ रहा है, जहाँ महिलाओं को लंबे समय तक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से वंचित रखा गया। किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात संविधान में महिलाओं को समान अधिकार, शिक्षा, मतदान का अधिकार, संपत्ति में भागीदारी और जीवन की गरिमा का वचन दिया गया। इसके बावजूद, व्यावहारिक धरातल पर यह स्पष्ट होता है कि महिलाएँ आज भी कई स्तरों पर संघर्षरत हैं।
महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य केवल स्त्रियों को अधिकार देना नहीं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सामाजिक निर्णयों में भागीदारी के योग्य बनाना है। यह शोध-पत्र भारत में महिला सशक्तिकरण की स्थिति, उसकी चुनौतियों, उपलब्धियों और सामाजिक परिवर्तन में उसकी भूमिका का विश्लेषण करता है।
2. शोध उद्देश्य (Objectives of the Study):
• भारत में महिला सशक्तिकरण की ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना।
• वर्तमान समय में महिला सशक्तिकरण के विभिन्न पहलुओं (शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक) का विश्लेषण करना।
• महिला सशक्तिकरण में सरकारी योजनाओं, नीतियों और कानूनों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।
• समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण और मानसिकता में आए परिवर्तनों का परीक्षण करना।
• महिला सशक्तिकरण की दिशा में मौजूद बाधाओं और उनके समाधान के उपायों की पहचान करना।
3. शोध पद्धति (Research Methodology): यह शोध गुणात्मक और विश्लेषणात्मक पद्धति पर आधारित है। अध्ययन के लिए प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों का उपयोग किया गया है। सरकारी दस्तावेज, योजनाएँ, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्टें, जनगणना के आँकड़े, एनएफएचएस सर्वेक्षण, समाचार पत्रों, शोध-पत्रों और सामाजिक संगठनों के अभिलेखों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं के अनुभवों और विचारों को केस स्टडी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
4. भारत में महिला सशक्तिकरण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
भारत में महिला सशक्तिकरण की जड़ें गहराई से प्राचीन काल के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में जुड़ी हुई हैं। वैदिक काल को स्त्री शिक्षा और सामाजिक स्वतंत्रता का एक स्वर्ण युग माना जाता है, जिसमें गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा, अपाला जैसी विदुषी महिलाओं ने न केवल वैदिक ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि दार्शनिक वाद-विवाद में भाग लेकर पुरुषों के साथ समकक्ष स्थान प्राप्त किया। इन महिलाओं की उपस्थिति यह दर्शाती है कि उस काल में स्त्रियों को बौद्धिक एवं सामाजिक उन्नयन का अवसर प्राप्त था। किन्तु समय के साथ समाज में संरचनात्मक परिवर्तन हुए, और स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आने लगी। उत्तरवैदिक काल में धार्मिक ग्रंथों की व्याख्याओं ने पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों को बल दिया, जिससे महिलाओं की स्वतंत्रता सीमित हो गई। मध्यकाल में इस गिरावट ने गंभीर रूप धारण किया। इस काल में बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, और विधवाओं की सामाजिक बहिष्कृति जैसी कुप्रथाएँ व्यापक रूप से फैलीं। महिलाओं को शिक्षा, सार्वजनिक जीवन और संपत्ति अधिकारों से वंचित कर दिया गया, जिससे वे एक प्रकार से पुरुषों पर निर्भर प्राणी बनकर रह गईं।
ब्रिटिश शासन काल में सामाजिक सुधार आंदोलनों ने पुनः एक चेतना का संचार किया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन के लिए संघर्ष किया, जो अंततः 1829 में प्रतिबंधित हुई। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा को लेकर आवाज़ उठाई। इसी क्रम में महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूल स्थापित किए और दलित तथा स्त्री अधिकारों के लिए आंदोलन चलाया। इन्होंने स्त्री को सामाजिक दमन के विरुद्ध खड़ा होना सिखाया।
स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी भारत में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक निर्णायक मोड़ था। रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, अरुणा आसफ़ अली, सरोजिनी नायडू जैसी कई महिलाओं ने स्वतंत्रता की लड़ाई में न केवल हिस्सा लिया, बल्कि नेतृत्व की भूमिका भी निभाई। इस काल में महिलाओं ने यह दिखा दिया कि वे केवल गृहस्थ जीवन की परिधि में सीमित रहने वाली इकाई नहीं हैं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय परिवर्तन की वाहक भी बन सकती हैं।
भारत के संविधान ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात महिलाओं को विधिक रूप से समान अधिकार प्रदान किए—जैसे समानता का अधिकार, मतदान का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा और कार्यस्थल पर समान अवसर का अधिकार। यह स्पष्ट करता है कि महिला सशक्तिकरण की ऐतिहासिक यात्रा केवल संघर्ष की नहीं, बल्कि जागृति, आत्मविश्वास और परिवर्तन की यात्रा भी रही है। किंतु इन वैधानिक प्रावधानों के बावजूद सामाजिक व्यवहार में गहराई से जमी असमानता, भेदभाव और रूढ़ियों को समाप्त करना एक दीर्घकालिक प्रक्रिया रही है, जिसे आज भी निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
इस प्रकार भारत में महिला सशक्तिकरण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एक प्रेरणादायक, संघर्षशील और जटिल प्रक्रिया रही है, जो आधुनिक समाज की नींव को मजबूत करने में निरंतर सहायक सिद्ध हो रही है।
5. सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में सशक्तिकरण:
• सामाजिक सशक्तिकरण: आज महिलाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, विवाह और परिवार नियोजन जैसे मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करने लगी हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, POSHAN अभियान आदि ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ करने का प्रयास किया है। इसके बावजूद, ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में अभी भी लिंग आधारित भेदभाव, घरेलू हिंसा, भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा आदि समस्याएँ व्याप्त हैं।
• राजनीतिक सशक्तिकरण: भारतीय संविधान ने महिलाओं को मताधिकार का समान अधिकार दिया। 73वें और 74वें संशोधन अधिनियमों के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान किया गया, जिससे लाखों महिलाएँ ग्राम, तालुका और जिला स्तर की राजनीति में भाग लेने लगीं। कुछ राज्यों में यह आरक्षण 50% तक बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा संसद में महिला आरक्षण बिल की चर्चा ने राजनीतिक भागीदारी को और बल दिया है।
• आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता सशक्तिकरण का एक प्रमुख आधार है। स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups), महिला बैंक, मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया आदि योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को स्वरोजगार, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। लेकिन असंगठित क्षेत्र की महिलाओं, घरेलू कामगारों और कृषि मजदूरों के लिए अब भी संरक्षित वातावरण की कमी है।
• महिला सशक्तिकरण में शिक्षा की भूमिका: शिक्षा महिलाओं के सशक्तिकरण की रीढ़ है। यह न केवल आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता बढ़ाती है, बल्कि सामाजिक कुप्रथाओं और अंधविश्वास के विरुद्ध महिलाओं को जागरूक भी करती है। सरकार द्वारा सर्वशिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना, किशोरी बालिका योजना, और डिजिटल साक्षरता अभियान जैसे कार्यक्रमों ने महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया है। फिर भी, बालिकाओं की ड्रॉपआउट दर, उच्च शिक्षा में कम भागीदारी और तकनीकी शिक्षा में अल्पसंख्यक उपस्थिति आज भी चुनौती बनी हुई है।
• महिला सशक्तिकरण और मीडिया: मीडिया ने महिला सशक्तिकरण के प्रचार-प्रसार में सकारात्मक भूमिका निभाई है। महिलाओं की उपलब्धियों, संघर्षों और मुद्दों को मुख्यधारा की चर्चा में लाने में सोशल मीडिया, टीवी, रेडियो और प्रिंट मीडिया की भूमिका सराहनीय रही है। साथ ही, कई बार मीडिया द्वारा महिलाओं की वस्तुकरण, ग़लत छवि निर्माण और ट्रोलिंग जैसे नकारात्मक पहलू भी सामने आते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मीडिया की भूमिका दोधारी है।
• सामाजिक मानसिकता और चुनौतियाँ: भारत में महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक मानसिकता है। आज भी कई समुदायों में कन्या को बोझ समझा जाता है। कार्यस्थलों पर लैंगिक भेदभाव, यौन उत्पीड़न, वेतन असमानता और नेतृत्व के अवसरों की कमी महिलाओं के विकास में बाधा हैं। "ग्लास सीलिंग" जैसी अवधारणाएँ आज भी आधुनिक क्षेत्रों में मौजूद हैं।
इसके अतिरिक्त, बाल विवाह, घरेलू हिंसा, धार्मिक कट्टरता, रूढ़िवादी परंपराएँ, और शिक्षा की कमी जैसे कारक महिला सशक्तिकरण की राह में गंभीर अड़चनें हैं।
6 महिला सशक्तिकरण के लिए सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ:
भारत सरकार ने महिलाओं के समग्र विकास और सशक्तिकरण के उद्देश्य से कई योजनाओं और नीतियों की शुरुआत की है, जो न केवल उनके शारीरिक, मानसिक और आर्थिक उत्थान को लक्षित करती हैं, बल्कि उन्हें समाज में आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने के लिए भी सक्षम बनाती हैं। ये योजनाएँ बहुआयामी हैं—शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय सशक्तिकरण, सुरक्षा, और सामाजिक सम्मान जैसे कई क्षेत्रों को समाहित करती हैं।
1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP): इस योजना की शुरुआत 2015 में की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य बालिका भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना और बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देना है। यह योजना मुख्यतः उन जिलों में केंद्रित है जहाँ बाल लिंगानुपात अत्यंत कम है। इसका उद्देश्य सामाजिक चेतना बढ़ाना, बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करना और बेटियों को जन्म से ही गरिमा व सुरक्षा प्रदान करना है।
2. सुकन्या समृद्धि योजना: यह एक छोटी बचत योजना है जो बालिकाओं की उच्च शिक्षा और विवाह के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई। इसमें माता-पिता या अभिभावक बेटी के नाम से खाता खोल सकते हैं, जिसमें नियमित जमा राशि पर उच्च ब्याज मिलता है। यह योजना बेटियों के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक प्रभावी पहल है।
3. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए यह योजना पोषण और स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देती है। इसमें पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं को 5000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है ताकि वे गर्भावस्था के दौरान पोषण व स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे सकें। यह योजना मातृत्व के अधिकार और स्वास्थ्य के प्रति सरकारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
4. उज्ज्वला योजना: इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण और गरीब महिलाओं को रसोई में स्वच्छ ईंधन (LPG) उपलब्ध कराकर उन्हें धुएँ से मुक्ति दिलाना है। पारंपरिक चूल्हे पर खाना पकाने से होने वाली बीमारियों को कम करने और महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा करने में यह योजना अत्यंत सफल रही है। यह महिला सशक्तिकरण को स्वास्थ्य और पर्यावरणीय सुरक्षा से जोड़ती है।
5. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013: इस क़ानून के तहत महिलाओं को कार्यस्थलों पर सुरक्षित वातावरण प्रदान करना सुनिश्चित किया गया है। इसमें हर संस्था में शिकायत समिति का गठन, गोपनीयता की रक्षा, समयबद्ध सुनवाई और न्यायिक प्रक्रिया का प्रावधान है। यह कानून महिलाओं को कार्यक्षेत्र में गरिमा और सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
6. महिला हेल्पलाइन 181: यह एक अखिल भारतीय टोल-फ्री हेल्पलाइन है जिसे संकटग्रस्त महिलाओं को त्वरित सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया। इसमें कानूनी परामर्श, पुलिस सहायता, चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक परामर्श जैसी सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। यह पहल महिला सुरक्षा की दिशा में एक सशक्त मंच के रूप में उभरी है।
अन्य महत्वपूर्ण पहलें: इसके अलावा ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’, ‘स्टेप (STEP) योजना’, ‘स्वाधार गृह’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना’, ‘महिला शक्ति केंद्र’ जैसी योजनाएँ और संस्थाएँ भी कार्यरत हैं, जो महिला उत्थान के लिए समर्पित हैं।
निष्कर्षतः, इन योजनाओं और नीतियों का उद्देश्य महिलाओं को न केवल लाभार्थी के रूप में देखना है, बल्कि उन्हें नीति निर्धारण, नेतृत्व और समाज निर्माण में सहभागी बनाना है। हालाँकि इन योजनाओं के क्रियान्वयन में कई बार क्षेत्रीय असमानता, सामाजिक रूढ़ियाँ और प्रशासनिक चुनौतियाँ सामने आती हैं, फिर भी इनका अस्तित्व महिला सशक्तिकरण की दिशा में भारत सरकार की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इन योजनाओं के प्रभाव को अधिक सशक्त और समावेशी बनाने के लिए जागरूकता, पारदर्शिता और सहभागिता को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
7. निष्कर्ष (Conclusion):
भारत में महिला सशक्तिकरण की यात्रा एक बहुआयामी, संघर्षशील और विकासशील प्रक्रिया रही है, जिसमें ऐतिहासिक प्रतिबद्धता, सामाजिक आंदोलनों, नीतिगत पहलों और व्यक्तिगत प्रयासों का समन्वय शामिल है। यद्यपि आज महिलाओं को संविधानिक अधिकार, शैक्षणिक अवसर, रोजगार की स्वतंत्रता और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसी अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं, फिर भी सामाजिक व्यवहार, लैंगिक पूर्वाग्रह और रूढ़िगत मानसिकता के कारण यह सशक्तिकरण पूर्ण रूप से साकार नहीं हो सका है। यह भी स्पष्ट है कि केवल कानूनी उपायों या सरकारी योजनाओं के बल पर महिलाओं को सशक्त नहीं किया जा सकता जब तक समाज में व्याप्त पारंपरिक सोच, पितृसत्तात्मक ढाँचा, और लैंगिक असमानता को चुनौती नहीं दी जाती। महिला सशक्तिकरण को एक सतत जनांदोलन की आवश्यकता है जिसमें पुरुषों की भी सक्रिय सहभागिता हो।
इस शोध अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक आत्मनिर्भरता, निर्णय लेने की स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान — ये पाँच ऐसे आधार स्तंभ हैं जो एक महिला को सशक्त बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि महिलाओं को केवल अधिकारों की दृष्टि से न देखा जाए, बल्कि उन्हें समाज के नेतृत्व, नीति निर्माण और सांस्कृतिक नवचेतना की वाहक के रूप में भी स्वीकार किया जाए।
आज जब भारत तेजी से डिजिटल, वैश्विक और समावेशी विकास की दिशा में अग्रसर है, तो महिला सशक्तिकरण केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि एक अनिवार्य शर्त बन जाता है। अतः यह शोध-पत्र इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि महिला सशक्तिकरण न केवल सामाजिक न्याय की आवश्यकता है, बल्कि यह भारत के समग्र और सतत विकास की रीढ़ है। जब महिलाएँ सशक्त होंगी, तभी भारत एक समरस, प्रगतिशील और न्यायपूर्ण राष्ट्र बन सकेगा।
8. संदर्भ सूची (References):
1. Government of India. (2015). Beti Bachao, Beti Padhao Yojana: Guidelines and Implementation Framework. Ministry of Women and Child Development. pp. 1–28.
2. Ministry of Finance. (2023). Sukanya Samriddhi Yojana: Rules and Updates. Government of India Publication Division. pp. 45–60.
3. Ministry of Health and Family Welfare. (2018). Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana: Annual Report 2017–18. New Delhi: GOI Press. pp. 10–39.
4. Planning Commission. (2011). Towards Gender Equity: Eleventh Five Year Plan Review. Chapter 6. pp. 142–168.
5. Sharma, Ritu. (2016). Mahila Sashaktikaran ke Naye Ayam. New Delhi: Rawat Publications. pp. 89–114.
6. UNESCO. (2014). Gender and Education for All: The Leap to Equality. Global Monitoring Report. Paris. pp. 73–102.
7. Sen, Amartya. (2001). Development as Freedom. New Delhi: Oxford University Press. pp. 189–205.
8. National Commission for Women (NCW). (2020). Women in India: Progress and Challenges. NCW Annual Report. pp. 23–59.
9. Deshpande, S. (2017). Gender Inequality in Modern India: Historical and Contemporary Perspectives. Economic and Political Weekly, Vol. 52(3), pp. 34–41.
10. Government of India. (2013). Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013. Ministry of Law and Justice. pp. 1–18.
11. United Nations. (2019). SDG Goal 5: Achieve Gender Equality and Empower All Women and Girls. Sustainable Development Knowledge Platform. pp. 1–25.
Keywords: .
Download/View Count: 5
Share this Article