Paper Details
भारतीय हरित अर्थव्यवस्था : सतत विकास एवं गरीबी उन्मूलन
Authors
Amit Singh
Abstract
वैष्विक विकास की वर्तमान अवधारणा हमें एक ऐसे रास्ते की ओर ले जा रही है जहां से वापस लौटना हमारे लिए मुष्किल ही नही ना मुमकिन होगा। दुनिया ने विकास की जिस रफ्तार को अपनाया है उससे एक ओर पर्यावरण को नुकसान हो रहा है वही दूसरी ओर उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे है। परन्तु 21 वींसदी के शुरूआती वर्षों में विष्व के सामने इन दुष्परिणामों से बचने एवं टिकाऊ विकास के लिए हरितअर्थव्यवस्था की अवधारणा उभर कर सामने आयी है। आज वैष्विक परिप्रेक्ष्य में हरित अर्थव्यवस्था की धारणापल्लवित हो रही है। जिसका उदेष्य पर्यावरणीय जोखिमों और पारिस्थितिक संकटों को कम करना तथा पर्यावरण के अनुकूल विकास करना है। 2011 में यूएनईपी के प्रतिवेदन में बताया गया है कि एक बेहतर अर्थव्यवस्था को न केवल कुषल अपितु निष्पक्ष भी होना चाहिए अर्थात उसे निम्न कार्बन उत्सर्जन, संसाधन प्रबंध और सामाजिक रूप से समावेषी होना चाहिए। हरित अर्थव्यवस्था ऐसी ही निष्पक्ष अर्थव्यवस्था का परिचायक है। यद्यपि इसकी अपनी चिन्ताएं भी है परन्तु वैष्वीकरण के दौर में सतत विकास एवं वैष्विक निर्धनता जैसी चुनौतियों के निदान में यह एक प्रभावी कदम हो सकती है। इस पर्चे का उद्देष्य तीव्र औद्योगिकीकरण एवं विकास के वर्तमान माॅडल से वैष्विक स्तर पर उभर रहे पर्यावरणीय संकट एवं सामाजिक विषमता जैसी समस्याओं तथा इन समस्याओं के निदान हेतु सतत विकास एवं उसके अगले कदम ग्रीन इकाॅनामी के दृष्टिकोण से विचार करना है। ग्रीन इकाॅनामी के परिप्रेक्ष्य में टिकाऊ विकास एवं समता पर आधारित सामाजिक विकास पर चर्चा केन्द्रित रहेगी।
Keywords
सतत् विकास, वैष्विक निर्धनता, ग्रीन इकाॅनामी, कार्बन उत्सर्जन, समावेषी विकास।
Citation
भारतीय हरित अर्थव्यवस्था : सतत विकास एवं गरीबी उन्मूलन. Amit Singh. 2023. IJIRCT, Volume 9, Issue 1. Pages 1-4. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2301006