राजस्थान में प्राकृतिक आपदाओं और प्रबंधन उपायों की प्रभावशीलता: भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन

Author(s): Shipra Vyas

Publication #: 2507010

Date of Publication: 04.07.2025

Country: India

Pages: 1-6

Published In: Volume 11 Issue 4 July-2025

Abstract

राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा भौगोलिक राज्य, जलवायु और स्थलाकृतिक विविधताओं का अनुपम उदाहरण है, जिसकी सीमाएँ पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में पंजाब और हरियाणा, पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तथा दक्षिण-पश्चिम में गुजरात से जुड़ी हुई हैं। यह राज्य अपने विशाल रेगिस्तानी विस्तार, असमान वर्षा वितरण, उच्च तापमान, और सीमित जल संसाधनों के लिए जाना जाता है। यही विशेषताएँ इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील बनाती हैं। राजस्थान में प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं में सूखा, बाढ़, मरुस्थलीकरण, भूकंप, टिड्डी हमला, आंधी-तूफान, ओलावृष्टि और शीत-लहर शामिल हैं। इन आपदाओं का प्रभाव न केवल पर्यावरणीय तंत्र पर पड़ता है, बल्कि समाज की जीवनशैली, कृषि उत्पादन, जनसंख्या की आजीविका, पशुधन, जल आपूर्ति, और आधारभूत संरचना पर भी गहरा प्रभाव डालता है। जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, अव्यवस्थित नगरीकरण और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने राज्य को और अधिक आपदा-संवेदनशील बना दिया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ कृषि ही मुख्य आजीविका का स्रोत है, सूखा और बाढ़ जैसी आपदाएँ जीवन को अस्थिर कर देती हैं। दूसरी ओर, टिड्डी हमले और आंधियाँ कृषक समुदाय की मेहनत को चुटकियों में नष्ट कर देती हैं। हाल के वर्षों में, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, बूँदी, और कोटा जैसे जिलों में विभिन्न आपदाओं की आवृत्ति में वृद्धि देखी गई है, जिससे राज्य का आपदा प्रबंधन ढाँचा एक बार फिर समीक्षा के केंद्र में आ गया है।

इस शोध-पत्र का उद्देश्य राजस्थान के भौगोलिक संदर्भ में प्राकृतिक आपदाओं की प्रवृत्तियों, उनके कारणों, और उनके द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण करना है। साथ ही, यह अध्ययन राज्य में लागू आपदा प्रबंधन उपायों की प्रभावशीलता का समग्र मूल्यांकन करता है और दीर्घकालिक नीति विकल्पों की ओर संकेत करता है जो राज्य को अधिक आपदा-प्रतिरोधी (disaster-resilient) बना सकते हैं।

2. शोध की आवश्यकता (Need of the Study)

राजस्थान की भौगोलिक स्थिति और जलवायु विविधता इसे आपदा-प्रवण राज्य बनाती है। राज्य की लगभग 60% भूमि शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र में आती है, जहाँ वर्षा असमान और अनिश्चित होती है। यहाँ के निवासियों की आजीविका मुख्यतः कृषि, पशुपालन और जल पर आधारित है, जो प्राकृतिक आपदाओं से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। सूखे की लगातार पुनरावृत्ति, टिड्डियों के आक्रमण, और बाढ़ जैसी घटनाओं से न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि सामाजिक अस्थिरता भी उत्पन्न होती है।

सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर आपदा प्रबंधन की योजनाएँ अपनाई गई हैं, लेकिन उनकी व्यावहारिक प्रभावशीलता, समुदाय तक पहुँच, और स्थायित्व को लेकर प्रश्नचिह्न बने हुए हैं। इस संदर्भ में यह अध्ययन अत्यंत आवश्यक हो जाता है, जिससे यह समझा जा सके कि:

• किस प्रकार की आपदाएँ राजस्थान में अधिक होती हैं?

• उनका भौगोलिक वितरण और सामाजिक प्रभाव किस प्रकार का है?

• कौन से उपाय कारगर हैं, और किनमें सुधार की आवश्यकता है?

यह अध्ययन न केवल नीति-निर्माताओं को दिशा देगा, बल्कि भौगोलिक अनुसंधानकर्ताओं, आपदा प्रबंधन अधिकारियों और स्थानीय समुदायों के लिए भी एक मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है।

3. उद्देश्य (Objectives)

1. प्राकृतिक आपदाओं की भौगोलिक पहचान – राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली प्रमुख आपदाओं (जैसे सूखा, बाढ़, मरुस्थलीकरण, टिड्डी हमला, आंधी-तूफान, भूकंप) का स्थलीय वितरण एवं आवृत्ति ज्ञात करना।

2. आपदाओं के बहुआयामी प्रभावों का मूल्यांकन – सामाजिक (जनसंख्या विस्थापन, स्वास्थ्य), आर्थिक (फसल हानि, रोजगार पर प्रभाव), और पर्यावरणीय (मृदा क्षरण, पारिस्थितिकीय असंतुलन) स्तर पर उनके प्रभावों का विश्लेषण करना।

3. वर्तमान आपदा प्रबंधन ढाँचे की समीक्षा – SDRF, NDRF, जिला प्रशासन, आपदा राहत योजनाओं, और NGO सहभागिता की कार्यप्रणाली और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।

4. समुदाय आधारित रणनीतियों की समीक्षा – स्थानीय समुदायों की आपदा से निपटने की क्षमता, पारंपरिक प्रणालियों, और जागरूकता कार्यक्रमों की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करना।

5. दीर्घकालिक नीति सुझाव प्रस्तुत करना – राज्य की भौगोलिक विशेषताओं के अनुरूप आपदा प्रबंधन के लिए व्यवहारिक, सशक्त और सतत रणनीतियाँ प्रस्तावित करना।

4. अध्ययन क्षेत्र का भौगोलिक परिप्रेक्ष्य (Geographical Profile of Rajasthan)

राजस्थान भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित एक विशाल राज्य है, जो 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है और यह भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10.4% भाग घेरता है। यह भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत विविधतापूर्ण प्रदेश है, जिसमें मरुस्थल, पर्वत, पठार, मैदान, नदी घाटियाँ तथा अंतर्देशीय नमभूमियाँ सम्मिलित हैं।

मुख्य स्थलाकृतिक विशेषताएँ:

• थार मरुस्थल: पश्चिमी राजस्थान में फैला यह विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला मरुस्थल है। यहाँ रेत के टिब्बे, बार्खन, और अंतर्वर्ती मैदान पाए जाते हैं। यहाँ वर्षा अत्यल्प होती है और तापमान अत्यधिक चरम पर होता है।

• अरावली पर्वतमाला: यह उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में फैली है और राजस्थान को दो भौगोलिक भागों में बाँटती है – पश्चिमी मरुस्थलीय भाग और पूर्वी उपजाऊ मैदान। यह भारत की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला है।

• पूर्वी मैदान: अरावली के पूर्व में स्थित यह क्षेत्र तुलनात्मक रूप से अधिक उपजाऊ है। यहाँ नदी घाटियाँ, समतल भूमि और कृषि योग्य मिट्टियाँ पाई जाती हैं।

• दक्षिणी पठारी क्षेत्र: कोटा, बूँदी, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर आदि जिलों में दक्षिणी राजस्थान के पठारी भूभाग स्थित हैं जो काली मृदा और उच्च वर्षा से समृद्ध हैं।

जलवायु विशेषताएँ:

• औसत वार्षिक वर्षा – 100 मिमी से 650 मिमी के बीच, जो दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ती है।

• तापमान – गर्मियों में 45°C से अधिक और सर्दियों में 0°C से कम तक गिरता है।

• मानसून की अवधि कम और अनियमित होती है, जिससे सूखा एक सामान्य आपदा बन गया है।

प्रमुख प्राकृतिक इकाइयाँ:

• शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र (जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर)

• अर्ध-शुष्क पूर्वी मैदान (जयपुर, टोंक, अलवर)

• वनाच्छादित दक्षिणी पठार (उदयपुर, बांसवाड़ा)

• नदी घाटियाँ और नमभूमियाँ (कोटा, झालावाड़, सम्भर झील)

राजस्थान की यह भौगोलिक विविधता ही इसे अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील बनाती है।

5. राजस्थान में प्रमुख प्राकृतिक आपदाएँ (Major Natural Disasters in Rajasthan)

राजस्थान में प्राकृतिक आपदाओं की प्रकृति बहुविध है और इनका स्वरूप राज्य के भूगोल और जलवायु से सीधा संबंधित है। निम्नलिखित आपदाएँ यहाँ सबसे अधिक प्रभाव डालती हैं:

5.1 सूखा (Drought)

• कारण: कम वर्षा, वर्षा की अनियमितता, तीव्र वाष्पीकरण, अधिक तापमान, और सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता।

• प्रभावित जिले: बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, नागौर।

• प्रभाव:

• कृषि उत्पादन में भारी गिरावट

• पशुपालन संकट – चारे और पानी की कमी

• पलायन की प्रवृत्ति

• पेयजल संकट और सामाजिक तनाव

राजस्थान के 13 जिले नियमित रूप से सूखे से प्रभावित होते हैं और कभी-कभी दो से तीन वर्षों तक लगातार सूखा पड़ता है।

5.2 बाढ़ (Flood)

• कारण: अचानक भारी वर्षा, शहरीकरण के कारण जल निकासी व्यवस्था का अभाव, जलाशयों की टूट-फूट।

• प्रभावित क्षेत्र: कोटा, झालावाड़, धौलपुर, अलवर, जयपुर।

• प्रभाव:

• फसलें और घर बह जाने का खतरा

• जनहानि और संपत्ति की क्षति

• संक्रामक रोगों का प्रकोप

• यातायात और संचार व्यवस्था में अवरोध

राजस्थान में बाढ़ की घटनाएँ सामान्यतः दक्षिण-पूर्वी जिलों में अधिक होती हैं जहाँ मानसूनी वर्षा तुलनात्मक रूप से अधिक है।

5.3 मरुस्थलीकरण (Desertification)

• कारण: अतिचराई, वनों की कटाई, जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन, असंतुलित कृषि, जलवायु परिवर्तन।

• प्रभावित क्षेत्र: जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, सीकर।

• प्रभाव:

• मृदा की उर्वरता में गिरावट

• खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर कमी

• पारिस्थितिकीय असंतुलन

• वृक्षावरण की कमी और जैव विविधता का ह्रास

मरुस्थलीकरण से राजस्थान की लगभग 60% भूमि प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रही है।

5.4 टिड्डी हमला (Locust Attack)

• कारण: पाकिस्तान, ईरान और अफ्रीका से आने वाले टिड्डी दल; मानसूनी आर्द्रता और वनस्पति की उपलब्धता।

• प्रभावित क्षेत्र: बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर।

• प्रभाव:

• फसल नष्ट होना

• कृषि में भारी आर्थिक नुकसान

• किसानों में मानसिक तनाव और ऋण संकट

2020 में टिड्डी हमले ने 30 से अधिक जिलों को प्रभावित किया था, जिससे राज्य को करोड़ों रुपये की क्षति हुई।

5.5 आंधी-तूफान और ओलावृष्टि (Thunderstorms and Hailstorms)

• कारण: वायुमंडलीय अस्थिरता, पश्चिमी विक्षोभ, चक्रवातीय दबाव।

• प्रभाव:

• खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद

• विद्युत आपूर्ति बाधित

• घरों और दुकानों को नुकसान

• बिजली गिरने से जानहानि

मार्च से मई और फिर अक्टूबर-नवंबर के बीच ये घटनाएँ अधिक पाई जाती हैं, जो सामान्यतः दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी जिलों में केंद्रित रहती हैं।

6. आपदा प्रबंधन की वर्तमान रणनीतियाँ (Current Disaster Management Strategies)

राजस्थान सरकार ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत कई बहुस्तरीय रणनीतियाँ विकसित की हैं, जो राज्य की विशिष्ट भौगोलिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई हैं। इन रणनीतियों में न केवल तकनीकी नवाचार बल्कि सामुदायिक सहभागिता को भी महत्व दिया गया है।

6.1 राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (State Disaster Response Force – SDRF)

• राजस्थान सरकार ने वर्ष 2010 में SDRF का गठन किया, जिसे NDRF की तर्ज पर प्रशिक्षित किया गया है।

• बल में प्रशिक्षित जवानों को बाढ़, भूकंप, रासायनिक आपदा, और खोज व बचाव कार्यों के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है।

• SDRF की तैनाती जिला और संभागीय स्तरों पर की जाती है, जहाँ वे तत्काल राहत व बचाव कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

6.2 मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान (MJSA)

• यह अभियान सूखा प्रबंधन और जल संरक्षण हेतु वर्ष 2016 में प्रारंभ किया गया।

• इसके अंतर्गत पारंपरिक जल संरचनाओं जैसे बावड़ियाँ, जोहड़, टांके आदि का संरक्षण और निर्माण किया गया।

• इस योजना ने जल संचयन को ग्राम पंचायत स्तर तक पहुँचाया और वर्षा जल के स्थानीय प्रबंधन पर ज़ोर दिया।

6.3 अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (Early Warning System)

• बाढ़, आंधी, ओलावृष्टि, ताप लहर और टिड्डी हमलों के लिए भारतीय मौसम विभाग (IMD) और NDMA के सहयोग से पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की गई है।

• मोबाइल एप्लिकेशन, SMS अलर्ट, और टेलीविजन/रेडियो विज्ञप्ति जैसे माध्यमों से जनता को समय रहते चेतावनी दी जाती है।

• नगरीय क्षेत्रों में डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड और ग्राम पंचायत स्तर पर घोषणाओं के माध्यम से अलर्ट प्रसारित किए जाते हैं।

6.4 सामुदायिक सहभागिता (Community Based Disaster Risk Management – CBDRM)

• NDMA और UNDP द्वारा ग्राम स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियों के गठन को बढ़ावा दिया गया है।

• विद्यालयों और कॉलेजों में आपदा साक्षरता कार्यक्रम, मॉक ड्रिल्स, और स्वयंसेवक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

• कई गैर-सरकारी संस्थाएँ (NGOs) और स्वयंसेवी संगठन बाढ़, सूखा, और टिड्डी आपदा के समय सामुदायिक सहायता प्रदान करते हैं।

7. प्रभावशीलता का मूल्यांकन (Effectiveness Assessment)

राज्य द्वारा अपनाई गई आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ निश्चित रूप से अनेक मोर्चों पर सफल रही हैं, लेकिन इनमें कुछ सीमाएँ और चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं। प्रभावशीलता का विश्लेषण निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से किया गया है:

सकारात्मक पहलू:

• SDRF की त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताएँ कई जिलों में बाढ़ व आंधी जैसी घटनाओं में जनहानि को कम करने में सफल रही हैं।

• MJSA ने हजारों गाँवों में जल संचयन संरचनाओं का निर्माण कर सूखा प्रतिरोधकता को मजबूत किया है।

• IMD द्वारा दी जाने वाली चेतावनियाँ अब अधिक सटीक, स्थान-विशिष्ट और समयोचित हो गई हैं, जिससे किसानों को अपनी फसलें बचाने का अवसर मिला है।

• CBDRM के अंतर्गत पंचायतों में जागरूकता कार्यक्रम से समुदायों में आपदा के प्रति मानसिक तैयारी की स्थिति सुधरी है।

मुख्य चुनौतियाँ:

• सामुदायिक प्रशिक्षण और जनसहभागिता की गति अभी भी अपेक्षा से कम है, विशेषकर सीमावर्ती और आदिवासी क्षेत्रों में।

• शहरी बाढ़ नियंत्रण योजना अब भी जयपुर, जोधपुर, उदयपुर जैसे प्रमुख शहरों में समुचित रूप से लागू नहीं की गई है।

• टिड्डी नियंत्रण हेतु अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की कमी से फसल नुकसान को समय पर रोका नहीं जा सका।

• जिला स्तर पर आपदा बजट अपर्याप्त होता है, जिससे राहत एवं पुनर्वास कार्यों में देरी होती है।

• GIS और Remote Sensing आधारित निगरानी प्रणाली का ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम प्रयोग देखा गया है।

8. सुझाव (Suggestions)

राजस्थान में आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए नीति, प्रशासन और समुदाय-आधारित दृष्टिकोण को समन्वित रूप से लागू करना आवश्यक है। निम्नलिखित सुझाव इस दिशा में मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं:

1. भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) आधारित जोखिम मानचित्रण सभी जिलों में अनिवार्य किया जाए। इससे सूखा, बाढ़, मरुस्थलीकरण और अन्य आपदाओं के जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान कर पूर्व तैयारी की जा सकती है। जिला प्रशासन के पास आपदा की प्रकृति के अनुसार योजना निर्माण के लिए स्थानिक आंकड़े उपलब्ध होंगे।

2. ग्राम आपदा प्रबंधन योजना को पंचायत स्तर पर लागू किया जाए। प्रत्येक पंचायत में आपदा जोखिमों की पहचान, संसाधनों की सूची, जिम्मेदार व्यक्तियों का निर्धारण और आपातकालीन प्रतिक्रिया की संरचना की जाए। इससे स्थानीय स्तर पर त्वरित और समन्वित कार्यवाही संभव होगी।

3. आपदा बीमा योजनाओं की पहुँच सभी छोटे और सीमांत किसानों तक सुनिश्चित हो। वर्तमान में बीमा योजनाओं का लाभ सीमित वर्ग तक सीमित रह जाता है, जबकि सबसे अधिक नुकसान इन्हीं किसानों को होता है। बीमा क्लेम की प्रक्रिया सरल और पारदर्शी बनाई जाए।

4. पारंपरिक ज्ञान प्रणाली जैसे जोहड़, टांके, बावड़ियाँ और अन्य जल संरक्षण संरचनाओं का आधुनिकीकरण कर उन्हें पुनर्स्थापित किया जाए। ये संरचनाएँ राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल हैं और सूखा तथा जल संकट से निपटने में सहायक हो सकती हैं।

5. स्कूल-कॉलेज स्तर पर आपदा शिक्षा को अनिवार्य किया जाए। पाठ्यक्रम में आपदाओं की प्रकृति, सुरक्षा उपाय, प्राथमिक चिकित्सा, और जलवायु परिवर्तन जैसे विषय शामिल किए जाएँ, ताकि बाल्यावस्था से ही आपदा के प्रति चेतना विकसित हो।

6. स्वयंसेवी संगठनों और नागरिक समाज संगठनों (CSOs) की भागीदारी को संस्थागत रूप दिया जाए। राहत, पुनर्वास, जनजागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में NGOs और स्थानीय संगठनों की भूमिका प्रभावशाली रही है। उन्हें राज्य आपदा प्राधिकरण से समन्वय स्थापित कर कार्य करने का अवसर मिलना चाहिए।

9. निष्कर्ष (Conclusion)

राजस्थान का आपदाजन्य परिदृश्य प्राकृतिक असमानताओं, जलवायु परिवर्तनों और मानवीय हस्तक्षेपों के कारण लगातार जटिल होता जा रहा है। राज्य के अधिकांश भाग विशेष रूप से सूखा, मरुस्थलीकरण, बाढ़, आंधी-तूफान और टिड्डी हमलों की चपेट में रहते हैं। इन आपदाओं ने न केवल कृषि उत्पादन, पशुधन, जल आपूर्ति और आवासीय संरचनाओं को क्षति पहुँचाई है, बल्कि मानव जीवन की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को भी बार-बार चुनौती दी है। यद्यपि आपदा प्रबंधन हेतु राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जैसे राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान, अर्ली वार्निंग सिस्टम, और पंचायत स्तर पर सामुदायिक प्रशिक्षण, फिर भी ये प्रयास कई स्तरों पर अभी भी आंशिक रूप से प्रभावी रहे हैं। इन प्रयासों में सबसे बड़ी कमी यह रही है कि अधिकांश रणनीतियाँ प्रायः आपदा के बाद राहत और पुनर्वास तक ही सीमित रह गई हैं, जबकि दीर्घकालिक तैयारी, जोखिम न्यूनीकरण और लचीलापन निर्माण की रणनीतियाँ अपेक्षित स्तर पर नहीं अपनाई गईं। राज्य के विशिष्ट भूगोल, जलवायु और सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन की नीतियों का विकेन्द्रीकरण और स्थानीयकरण किया जाना आवश्यक है। यदि आपदा प्रबंधन को केवल प्रतिक्रिया के रूप में न देखते हुए उसे एक निरंतर प्रक्रिया माना जाए जिसमें पूर्वानुमान, पूर्व तैयारी, समुदाय सहभागिता, पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का समन्वय हो, तो राजस्थान को आपदा-सहनशील राज्य के रूप में सशक्त किया जा सकता है।

इस प्रक्रिया में यह भी आवश्यक है कि समाज के सभी वर्गों को जागरूक और प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे न केवल आपदा के समय में अपनी सुरक्षा कर सकें, बल्कि अपने आस-पास के वातावरण की सुरक्षा में भी सक्रिय भूमिका निभा सकें। इस प्रकार, समग्र, सहभागी और भूगोल-आधारित रणनीति ही राजस्थान को भावी आपदाओं के लिए बेहतर रूप से तैयार कर सकती है।

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