बौद्ध धर्म का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: मिथिला और नेपाल में उद्भव और पतन की यात्रा

Author(s): REKHA TAILOR

Publication #: 2501092

Date of Publication: 27.01.2025

Country: India

Pages: 1-6

Published In: Volume 11 Issue 1 January-2025

Abstract

प्राचीन भारत, नेपाल और मिथिला के इतिहास में बौद्ध धर्म का उद्भव एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इसके संस्थापक गौतम बुद्ध थे, जिन्होंने गृह त्याग कर समाज में एक नये दृष्टिकोण की नींव डाली। उनके गृह त्याग की घटना इतिहास में 'महाभिष्क्रमण' के रूप में प्रसिद्ध है। बौद्ध धर्म के प्रणेता गौतम बुद्ध ने पहले दो ऋषियों से ज्ञान प्राप्ति के प्रयास किए, लेकिन वे संतुष्ट नहीं हो सके। इसके बाद, निरंजना नदी के किनारे उरूवेला नामक स्थान पर कठोर तपस्या की, जहां भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। अंततः 35 वर्ष की आयु में, बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसे बौद्ध धर्म का आद्य ज्ञान माना जाता है। बुद्ध ने इस ज्ञान के आधार पर सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया, जिसे 'धर्मचक्र परिवर्तन' के रूप में जाना जाता है। उनके उपदेशों ने न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी बौद्ध धर्म को फैलाया, और भारतीय दर्शन और चिंतन की एक अमूल्य धरोहर स्थापित की।

इस शोध पत्र में, बौद्ध धर्म के उद्भव, उसके सामाजिक प्रभावों और इसके पतन पर विस्तार से चर्चा की गई है, विशेष रूप से मिथिला और नेपाल के संदर्भ में। यह अध्ययन बौद्ध धर्म के सामाजिक और धार्मिक पहलुओं की गहरी समझ प्रदान करता है, जो इन क्षेत्रों के ऐतिहासिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुख्य शब्द: बौद्ध धर्म, गृह त्याग, ज्ञान प्राप्ति, उपदेश, धर्मचक्र परिवर्तन, महानिर्वाण

भूमिका

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महान गौतम बुद्ध का व्यक्तित्व और उनके कार्य न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी गहरी छाप छोड़ने वाले थे। उनका योगदान भारतीय समाज और संस्कृति को सशक्त बनाने के साथ-साथ पूरे विश्व में फैल गया। मिथिला और नेपाल के प्राचीन इतिहास और संस्कृति की यात्रा में बौद्ध धर्म ने एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। इन क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के प्रभाव ने समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को आकार दिया। विशेष रूप से मिथिला और नेपाल के सामाजिक जीवन में धर्म का गहरा प्रभाव देखा गया है, जो इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास को प्रभावित करता है। बौद्ध धर्म को विश्व का पहला लोकतांत्रिक धर्म माना जाता है, और यह उन विचारों और सिद्धांतों का विस्तार करता है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देते हैं। महात्मा बुद्ध का जन्म सिद्धार्थ के नाम से हुआ था, और वे अत्यंत चिंतनशील और एकांतप्रिय व्यक्ति थे। उनका पालन-पोषण उनकी विमाता और मौसी प्रजापति ने किया। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ और उन्हें एक पुत्र का आशीर्वाद मिला। इस समय उन्हें यह अहसास हुआ कि वे संसारिक जीवन के मोह में बंधे हुए हैं। इस बीच, एक दिन संयोगवश उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति, एक रोगी और एक मृतक को देखा। यह दृश्य उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और उन्होंने अपने राजसी ठाट-बाट को छोड़ने का संकल्प लिया।

गृह त्याग की यह घटना इतिहास में ‘महाभिष्क्रमण’ के नाम से जानी जाती है। इसके बाद, उन्होंने सत्य और ज्ञान की खोज में आलार और उदक नामक दो ऋषियों से मार्गदर्शन प्राप्त किया, लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली। फिर, उरूवेला नामक स्थान पर निरंजना नदी के तट पर अपने पांच साथियों के साथ कठोर तपस्या की, किंतु वहां भी उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अंततः, उन्होंने तपस्या का मार्ग छोड़कर अपना अकेला रास्ता अपनाया और 35 वर्ष की आयु में बोधि वृक्ष के नीचे वास्तविक ज्ञान प्राप्त किया। इस ज्ञान के आधार पर वे ‘बुद्ध’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।

आधुनिक शोध और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह घटना महत्वपूर्ण है, और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार, "साक्ष्य वह रेखांकन है जो अतीत या वर्तमान घटनाओं से संबंधित ज्ञान की प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सके।" इस प्रकार, किसी घटना का क्रमबद्ध ज्ञान और तथ्यों का विश्लेषण उसे एक प्रमाणित साक्ष्य में बदल देता है, जिससे शोधकर्ता और इतिहासकार घटनाओं की सत्यता का मूल्यांकन करते हैं।

बौद्ध धर्म का प्रचार

गौतम बुद्ध ने अपने बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद अपने उपदेशों को फैलाना शुरू किया और सबसे पहले सारनाथ में अपने पांच भिक्षु साथियों को धर्म का उपदेश दिया। ये पांच भिक्षु, जिन्हें भारतीय इतिहास में पंचवर्गीय नाम से जाना जाता है, बौद्ध धर्म के पहले अनुयायी बने। धीरे-धीरे इन अनुयायियों की संख्या बढ़ी और गौतम बुद्ध ने संघ का गठन किया। इस संघ की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ एक शपथ अनिवार्य कर दी गई, जिसमें व्यक्ति को यह स्वीकार करना होता था कि वह बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में जाता है।

बौद्ध धर्म के प्रचार के सिलसिले में गौतम बुद्ध कपिलवस्तु भी गए, जहां उन्होंने अपने पुत्र राहुल और भाई नंद को संघ में शामिल किया। इसके अलावा, उनके प्रिय शिष्य आनंद की विशेष प्रेरणा पर, उन्होंने अपनी विमाता प्रजापति को भी संघ में शामिल किया। इसके बाद, महात्मा बुद्ध ने उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में अपने उपदेशों का प्रचार किया। अपने जीवन के अगले 45 वर्षों तक उन्होंने इस धर्म का प्रचार किया, और अंततः 80 वर्ष की आयु में 483 ई. पू. कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ, जिसे भारतीय इतिहास में ‘महापरिनिर्वाण’ के नाम से जाना जाता है।

Keywords: बौद्ध धर्म, गृह त्याग, ज्ञान प्राप्ति, उपदेश, धर्मचक्र परिवर्तन, महानिर्वाण

Download/View Paper's PDF

Download/View Count: 358

Share this Article