डॉ. सुधा अरोड़ा के कथा साहित्य में स्त्री विमर्श और सामाजिक परिवर्तन

Author(s): Kanhaiya Lal Sagitra

Publication #: 2501077

Date of Publication: 20.01.2025

Country: India

Pages: 1-5

Published In: Volume 11 Issue 1 January-2025

Abstract

समाज में नारी के अस्तित्व को पहचानने और उसे स्वतंत्रता, सम्मान, और स्वाधीनता देने के लिए संघर्ष निरंतर जारी है, और डॉ. सुधा अरोड़ा के कथा साहित्य में यह संघर्ष प्रमुख रूप से उभर कर सामने आता है। उनके लेखन में नारी चेतना की पहचान और अभिव्यक्ति को एक गहरी समझ के साथ चित्रित किया गया है, जिसमें स्त्री के अस्तित्व की चुनौतियाँ, उसकी मानसिक पीड़ाएँ, और समाज के विभिन्न दबावों के बावजूद उसका आत्म-निर्णय और स्वाभिमान प्रमुख रूप से प्रदर्शित होते हैं। इस आधुनिक काल में स्त्री को न केवल शारीरिक सुख का अधिकार चाहिए, बल्कि उसे समाज में सम्मान और स्वायत्तता भी प्राप्त होनी चाहिए। बावजूद इसके, समाज के स्थापित ढाँचों और नैतिकताओं में बंधी हुई स्त्री को अपने अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। डॉ. अरोड़ा के कथा साहित्य में यह संघर्ष स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आता है, जहाँ स्त्री को अपने अस्तित्व के लिए हर दिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनके पात्रों में मानसिक तनाव, शारीरिक और मानसिक दासता, तथा परिवार और समाज की उम्मीदों का दबाव विशेष रूप से महसूस होता है।

इस साहित्य में नारी के शारीरिक और मानसिक उत्थान के लिए उसकी भावनाओं और इच्छाओं का चित्रण किया गया है, जो समाज की पारंपरिक सोच और आदर्शों से टकराती हैं। डॉ. अरोड़ा की लेखनी में स्त्री के संघर्ष को न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामाजिक संदर्भ में भी देखा जाता है, जहां समाज की सुसंस्कृत धारा और पारिवारिक संरचनाओं को चुनौती दी जाती है। उनके कथा साहित्य में स्त्री का संघर्ष एक समग्र सामाजिक चित्रण है, जिसमें वह न केवल अपने आत्मविश्वास को पुनः प्राप्त करती है, बल्कि अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए समाज के खिलाफ आवाज भी उठाती है। कुल मिलाकर, डॉ. सुधा अरोड़ा का कथा साहित्य नारी चेतना का सशक्त प्रमाण प्रस्तुत करता है, जहाँ स्त्री अपने अस्तित्व की पहचान को पुनः स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ती है और समाज में अपने स्थान

Keywords: नारी चेतना, संघर्ष, समाज, परिवार, सम्मान, स्वाभिमान, मानसिक पीड़ा, स्वतंत्रता

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