माणिक्यलाल वर्मा का किसान आंदोलन में योगदान
Author(s): Ankita Singh
Publication #: 2501073
Date of Publication: 20.01.2025
Country: India
Pages: 1-3
Published In: Volume 11 Issue 1 January-2025
Abstract
सन् 1931 का बिजोलिया किसान सत्याग्रह, राजस्थान के किसान आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। यह आंदोलन राजस्थान सेवक संघ के विघटन के बाद शुरू हुआ। पथिक जी ने इस आंदोलन का मार्गदर्शन तो किया, लेकिन इसका वास्तविक और सक्रिय नेतृत्व श्री माणिक्यलाल वर्मा के हाथों में था। वर्मा जी ने न केवल इस आंदोलन को संगठित किया बल्कि किसानों की समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया। बिजोलिया आंदोलन से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने महामना मदनमोहन मालवीय से आग्रह किया कि वे मेवाड़ सरकार से बात कर किसानों को न्याय दिलाने का प्रयास करें। गांधी जी के अनुरोध पर मालवीय जी ने मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर सुखदेव को पत्र लिखकर किसानों की समस्याओं के समाधान की अपील की। इस परिस्थिति का उपयोग करते हुए सर सुखदेव ने किसानों को कुछ राहत देकर महात्मा गांधी और मालवीय जी की सहानुभूति तो प्राप्त की, लेकिन उनके असली उद्देश्य में किसानों के नेता माणिक्यलाल वर्मा को आंदोलन से अलग करना था।
वर्मा जी का योगदान केवल नेतृत्व तक सीमित नहीं था। 1915 में विजयसिंह पथिक के मार्गदर्शन में वर्मा जी ने बिजोलिया आंदोलन को और अधिक मजबूती प्रदान की। 1920 में जब यह आंदोलन अत्याचारी सामंती व्यवस्था और निरंकुश राजतंत्र के खिलाफ एक बड़े विद्रोह के रूप में उभरा, तब वर्मा जी ने इसे सशक्त और संगठित दिशा दी।
किसानों के लिए संघर्ष और जेल यात्रा
उदयपुर के महाराणा ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए हर संभव प्रयास किया। आंदोलन को दबाने के लिए दमनचक्र तीव्र कर दिया गया। आंदोलन के प्रमुख नेताओं, जिनमें माणिक्यलाल वर्मा और साधु सीताराम दास शामिल थे, को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के विरोध में लगभग 500 किसानों ने बिजोलिया किले के सामने प्रदर्शन किया। इस घटना ने आंदोलन को और अधिक ऊर्जा दी। वर्मा जी ने न केवल किसानों के लिए अपना जीवन समर्पित किया बल्कि प्रजामंडल की बैठकों में जागीरदारों के अत्याचारों को उजागर करते हुए सामंती व्यवस्था के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित करवाए। उन्होंने मेवाड़ की जनता को शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से संघर्ष करने की सलाह दी। 1931 में कुंभलगढ़ की जेल यात्रा के दौरान, वर्मा जी को कठोर यातनाएं झेलनी पड़ीं। उनकी गिरफ्तारी के दौरान उन्हें चोटें आईं, जिसके बाद उन्हें जहाजपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी स्वास्थ्य स्थिति इतनी गंभीर थी कि मेवाड़ प्रजामंडल के सहायक मंत्री नंदलाल जोशी ने मेवाड़ सरकार को पत्र लिखकर उनकी देखभाल की अपील की।
सरकार की प्रतिक्रिया
सरकार ने वर्मा जी के प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें किसानों से अलग करने का प्रयास किया। सेटलमेंट असिस्टेंट ने सलाह दी कि वर्मा जी को ऊपरमाल क्षेत्र से हटाकर किसी अन्य स्थान पर बसाया जाए, ताकि वे किसानों से संपर्क न कर सकें। लेकिन वर्मा जी का त्याग और समर्पण किसानों के दिलों में उनकी गहरी जगह बना चुका था। माणिक्यलाल वर्मा का जीवन और संघर्ष न केवल बिजोलिया आंदोलन का इतिहास है, बल्कि यह किसानों के अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए किए गए बलिदानों की गाथा भी है। कुंभलगढ़ की जेल यात्रा और उनके संघर्षों ने राजस्थान में सामाजिक चेतना और क्रांतिकारी आंदोलनों को नई दिशा दी। उनका योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
माणिक्यलाल वर्मा का जीवन संघर्ष और समर्पण की एक उत्कृष्ट मिसाल है। उनका पूरा जीवन किसानों और समाज के शोषित वर्गों के अधिकारों और उत्थान के लिए समर्पित रहा। 1922 से शुरू हुए उनके आंदोलन ने मेवाड़ क्षेत्र में किसानों के हितों को एक नई दिशा दी।
किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष
किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष माणिक्यलाल वर्मा के जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा। 1922 में किसानों और मेवाड़ सरकार के बीच हुए समझौते का पालन न होने पर वर्मा ने न केवल किसानों को जागरूक किया, बल्कि उनके हक की लड़ाई को एक संगठित आंदोलन का रूप दिया। वर्मा का मानना था कि किसानों का शोषण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनैतिक समस्या भी है। उनके नेतृत्व में किसानों ने शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीकों से अपने अधिकारों की मांग करना शुरू किया। जब 1927 में सरकार ने लगान में बढ़ोतरी कर दी, तो यह किसानों के लिए असहनीय हो गया। इस बढ़े हुए लगान का विरोध करने के लिए वर्मा ने किसानों को संगठित किया और सत्याग्रह का आह्वान किया। किसानों ने सरकार के आदेशों की अवहेलना करते हुए अपनी जमीनों पर हल चलाना शुरू कर दिया। यह आंदोलन तेजी से पूरे क्षेत्र में फैल गया और किसानों की एकता का प्रतीक बन गया। सरकार ने इस विरोध को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, लेकिन वर्मा और उनके साथियों ने दृढ़ता से इसका सामना किया। सरकार ने वर्मा और उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें कुंभलगढ़ जेल में रखा गया, जिसे अत्यंत कठोर और अमानवीय परिस्थितियों के लिए कुख्यात माना जाता था। जेल में वर्मा को शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कुंभलगढ़ जेल में बिताए गए दिन उनके संघर्ष और बलिदान की गाथा बन गए। इस जेल को उस समय 'काले पानी की सजा' के समान माना जाता था, जो किसी भी व्यक्ति के लिए बेहद कष्टदायक अनुभव था। जेल में रहकर भी वर्मा ने अपनी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने जेल में साथी कैदियों को प्रेरित किया और उन्हें संघर्ष के लिए तैयार किया। उनका साहस और अदम्य आत्मविश्वास न केवल उनके साथियों के लिए प्रेरणा बना, बल्कि पूरे आंदोलन को भी ऊर्जा प्रदान करता रहा। किसानों के अधिकारों के लिए उनका यह संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। वर्मा का यह त्याग और संघर्ष न केवल किसानों के हक की आवाज बना, बल्कि उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि संगठित और सशक्त जनता अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ सकती है।
इस आंदोलन ने न केवल किसानों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला, बल्कि पूरे मेवाड़ क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता का संचार किया। वर्मा की इस लड़ाई ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अन्याय के खिलाफ अहिंसा और सत्याग्रह सबसे प्रभावी हथियार हैं। उनके संघर्ष का यह अध्याय आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
Keywords: .
Download/View Count: 127
Share this Article