लोकभाषा छत्तीसगढ़ी की ‘अनुरूप‘ शब्द गढ़न एवं ध्वनन क्षमता

Author(s): डॉ. द्वारिका प्रसाद चन्द्रवंशी

Publication #: 2412139

Date of Publication: 10.01.2022

Country: India

Pages: 1-5

Published In: Volume 8 Issue 1 January-2022

Abstract

यद्यपि छत्तीगढ़ी तो बोली है तथापि इसकी विषेशता किसी विकसित भाशा से कम नहीं है। ये बोली समयानुरूप एवं परिस्थिति के अनुरूप अपने षब्द गढ़न एवं ध्वनन की बेजोड़ क्षमता रखती है। हर परिस्थिति में ये अपने को सहजता से मुखर करती रहती है तथा उन परिस्थितियों के अनुरूप अपने को सहजता से ढाल भी लेती है। इसकी अनुरूप षब्द गढ़न एवं ध्वनन क्षमता कई विकसित भाशाओं से भी बेजोड़ है। प्रस्तुत षोध-आलेख में लोक भाशा छत्तीगढ़ी की इन्हीं विषेशताओं पर सूक्ष्मता से प्रकाष डालने का प्रयास किया गया है।

Keywords: बोथ, ओंग, भोड़ू, ढकर-ढकर, चुपुर-चुपुर, कुरूम-कुरूम, चुरूम-चुरूम, गुलूम-गुलूम, गेदरा, बतिया, रूढ्ढा, सुक्सा, गुज-गुज

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