जैविक खेती हरित विश्व की संकल्पना का भौगोलिक विश्लेषण

Author(s): सिद्धार्थ चौधरी

Publication #: 2412045

Date of Publication: 11.10.2024

Country: india

Pages: 1-5

Published In: Volume 10 Issue 5 October-2024

Abstract

भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे पारिस्थतिक तन्त्र में विभिन्न प्राकृतिक चक्र निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता था। विश्व में तीव्र जनसंख्या वृद्धि एक गंभीर समस्या है, बढ़ती जनसंख्या के साथ खाद्य आपूर्ति के लिए मानव द्वारा उत्पादन की स्पर्धा में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के पारितंत्र में जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र को प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है। जैविक खेती (Organic Farming) कृषि की वह विधा है, जिसमें मृदा को स्वस्थ व जीवन्त रखते हुए केवल जैविक खाद के प्रयोग से प्रकृति के साथ समन्वय रखकर टिकाऊ फसल का उत्पादन किया जाता है। जैविक खेती या कार्बनिक फार्मिंग, संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अल्पतम या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है, तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। पिछली सदी के आखिरी दशक से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है। जैविक खेती वह सदाबहार पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली क्षमता को बढ़ाती है। जैविक खेती किसानों के स्वावलम्बन की अभिनव योजना है। इसका मुख्य उदेश्य किसानों की आय में वृद्धि कर जैविक खेती का प्रशिक्षण, प्रोत्साहन एवं किसानों को स्वावलम्बी बनाना है। जैविक खेती अनेक पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान है।

Keywords: ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जैविक खेती, पारंपरिक कृषि पद्धति, कार्बनिक फार्मिंग, संश्लेषित उर्वरक।

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