छायावाद: एक समग्र विवेचन और हिंदी साहित्य में इसका योगदान
Author(s): डॉ. पहल मंजुल
Publication #: 2410055
Date of Publication: 16.10.2024
Country: India
Pages: 1-20
Published In: Volume 10 Issue 5 October-2024
DOI: https://doi.org/10.5281/zenodo.13989612
Abstract
छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग रहा है, जिसने हिंदी काव्य को एक नई दिशा दी। यह युग हिंदी साहित्य के इतिहास में लगभग 1918 से 1936 तक माना जाता है, जब हिंदी कविता में एक नई प्रवृत्ति ने जन्म लिया, जिसे छायावाद के नाम से जाना गया। छायावाद का उद्भव एक ऐसे समय में हुआ, जब भारतीय समाज में सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक बदलाव तेजी से हो रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उथल-पुथल ने समाज में जागरूकता फैलाई, और इस जागरूकता का प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा।
छायावादी कविता का केंद्रबिंदु व्यक्तिगत अनुभूतियाँ, रहस्यवाद, और सौंदर्य की सूक्ष्म व्यंजना है। यह काव्यधारा एक प्रकार से हिंदी काव्य में स्वच्छंदतावादी प्रवृत्ति का विस्तार है, जो पहले भक्ति और रीतिकालीन काव्य से भिन्न है। इस काव्य शैली में कवियों ने व्यक्तिनिष्ठ भावनाओं, आत्मीय अनुभवों और प्रकृति के माध्यम से जीवन के गूढ़ रहस्यों को व्यक्त किया। छायावाद ने हिंदी कविता को केवल सामाजिक और नैतिक उपदेशों तक सीमित न रखते हुए, उसे गहन आंतरिक भावनाओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
छायावाद के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, और महादेवी वर्मा रहे हैं, जिन्होंने इस धारा को अपने अद्वितीय काव्य दृष्टिकोण से समृद्ध किया। इन कवियों की रचनाओं में आध्यात्मिकता, प्रकृति-प्रेम, और वेदना के साथ-साथ व्यक्तित्व की गहराई को चित्रित किया गया है। जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’, निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’, पंत की ‘पल्लव’, और महादेवी वर्मा की ‘यामा’ जैसी रचनाओं ने छायावाद को न केवल हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान दिलाया, बल्कि इसके प्रभाव को दूरगामी बना दिया।
छायावाद के कवियों ने कविता के माध्यम से एक नई भाषा, शिल्प और सौंदर्य दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो पहले की हिंदी कविता से भिन्न और नवोन्मेषी था। इस काव्य शैली ने व्यक्तिगत अनुभूतियों के साथ-साथ रहस्य और आध्यात्मिकता का भी समावेश किया, जिससे यह एक व्यापक और गूढ़ दृष्टिकोण वाली काव्य धारा बनी। छायावाद का यह साहित्यिक आंदोलन न केवल साहित्यिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिसने हिंदी साहित्य में आधुनिकीकरण की नींव रखी।
इस शोधपत्र का उद्देश्य छायावाद के इस समग्र योगदान का विस्तार से विवेचन करना है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि हिंदी साहित्य के विकास में छायावाद की क्या भूमिका रही है।
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