मीरा की भक्ति भावना: प्रेम, माधुर्य और वैराग्य का संगम
Author(s): डॉ पूजा जोरासिया
Publication #: 2410028
Date of Publication: 11.10.2024
Country: India
Pages: 1-6
Published In: Volume 10 Issue 5 October-2024
Abstract
मीरा एक प्रमुख मध्यकालीन भक्त कवयित्री हैं, जिनकी कविताओं में गहरी भक्तिभावना की अभिव्यक्ति होती है। उनका जीवन और लेखन भक्ति आंदोलन के एक महत्वपूर्ण पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें उन्होंने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को अद्भुत रूप से व्यक्त किया है। उनकी भक्ति प्रेम रसमार्गी थी, जिसमें श्री कृष्ण को प्रेम का आलम्बन मानते हुए, वे अपने प्रेम को ब्रजगोपिका के समान चित्रित करती हैं। नाभादास ने मीरा की भक्ति को प्रेमभाव से ओतप्रोत बताया है, जो माधुर्य और विरह भावना से गहराई से जुड़ी है।
मीरा की रचनाओं में प्रेमाभक्ति के साथ-साथ वैराग्यमूलक दास्य भावना का भी समावेश मिलता है। यह उनके गहरे प्रेम और आस्था का प्रतीक है, जिसमें प्रेम के साथ-साथ विरह का दर्द भी स्पष्ट रूप से उभरता है। मीरा और कृष्ण के बीच का गहरा भावनात्मक संबंध उनकी भक्ति को विशेष बनाता है, जिसे भक्तों और संतों द्वारा सर्वोच्च माना जाता है। उनके भक्ति गीतों में यह प्रेमाभक्ति परिलक्षित होती है, जो न केवल धार्मिक अनुशासन का पालन करती है, बल्कि मानवता और प्रेम के सार्वभौमिक मूल्यों को भी प्रस्तुत करती है।
मीरा की कविताओं में प्रेम की गहराई और वैराग्य का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। उनके गीतों में यह स्पष्ट दिखाई देता है कि वे अपने आराध्य कृष्ण के प्रति किस प्रकार की दीवानगी और भक्ति रखती थीं। उनकी कविताओं का अध्ययन करते समय, हम यह देख सकते हैं कि कैसे वे भक्ति को एक अद्वितीय अनुभूति के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जिसमें व्यक्तिगत भावनाएं और आध्यात्मिक साधना का सुंदर मिलन होता है। उदाहरणस्वरूप, मीरा के कुछ प्रसिद्ध गीत इस प्रेमाभक्ति की छवि स्पष्ट रूप से चित्रित करते हैंः
(1) ‘प्रेम भगति से पैण, म्हारो और णा जांणोरीत’
(2) ‘मीरा सिरि गिरधर नट नागर, भगति रसीली जाँची री’
मीरा की भक्ति केवल एक धार्मिक साधना नहीं थी, बल्कि यह उनके जीवन का सार थी। उनके गीतों और कविताओं में जिस प्रकार कृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण की गहराई मिलती है, वह न केवल उनके आध्यात्मिक अनुभव का प्रतीक है, बल्कि एक मानवमूल्य के रूप में भी इसे देखा जा सकता है। मीरा की कविताएं समाज के लिए एक आदर्श बनीं, जो दिखाती हैं कि किस प्रकार प्रेम और भक्ति मनुष्य को अपने आराध्य के निकट लाती है। यही कारण है कि मीरा की भक्ति और उनके गीतों में वह अमरता और अनन्त प्रेम आज भी विद्यमान है, जो भक्ति साहित्य की धरोहर बन चुकी है।
इस प्रकार, मीरा की कविताएँ न केवल धार्मिकता का प्रतीक हैं, बल्कि वे प्रेम, समर्पण और मानवता की उच्चतम भावना को भी उजागर करती हैं। उनके योगदान को भक्ति साहित्य में हमेशा याद किया जाएगा, और उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।
Keywords: स्पृहणीय, भावजगत, सात्विक, माधुर्य, भवसागर, आत्मनिवेदन, ऐषवर्यषाली, समस्यामूलक, भर्त्सना, परिप्रेक्ष्य, प्रामाणिक आदि।
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