आधुनिक भारत में स्वराज की मांग से उपजा जनविद्रोह

Author(s): राहुल कुमार शर्मा

Publication #: 2408041

Date of Publication: 10.08.2024

Country: India

Pages: 1-6

Published In: Volume 10 Issue 4 August-2024

Abstract

आधुनिक भारत में स्वराज के लिए उबलता जनआक्रोश का श्रेय बहुत सीमा तक उन भारतीय विचारकों पर निर्भर रहा, जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीतिक आन्दोलन का संचालन किया। सामान्यतः राजनीतिक अधिकारों की चेतना और राष्ट्रीयता की भावना के विकास को पर्यावाची समझा जाता है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है, विभिन्न उपनिवेशी में अथवा अधीन राज्यों में राष्ट्रीय आन्दोलन हुए हैं। लेकिन वे आवश्यक रूप से राजनीतिक सुविधाओं और अधिकारों तक सीमित नहीं रहे हैं। राजनीतिक अधिकारों के आन्दोलन भी राष्ट्रीय एवं समस्त देश एवं विदेश वासियों को प्रेरित तथा प्रभावित कर सकते हैं। सन् 1905 और 1918 के बीच की क्रांतिकारी गतिविधियों की जाँच के लिए रोलेट समिति ने कुछ निश्चित अधिकारियों के लिए सिफारिश की थी। 1905 से 1918 के बीच जनक्रांति को इस लेख में संकलित किया गया है। 1906-07 में तिलक ने नए उग्र दल के निर्माण तथा गठन में बहुत अधिक सहायता दी। वास्तव में उन्होंने ही सबसे पहले अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रतिरोधक नीति अपनाने की बात कही। तिलक एक ऐसी राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन देना चाहते थे, जिनका लक्ष्य राजनीतिक था वह स्वराज्य को भारतीय स्वतंत्रता के लिए आवश्यक समझते थे। 1908-1914 तक तिलक कारावास में रहे। 1914-15 में कुछ प्रयत्न कांग्रेस के दोनों दलों में समझौते के हुए, लेकिन कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 1916 में भारतीय रंगमंच पर कुछ विशेष परिस्थितियों का विकास हुआ। मुसलमानों में तुर्की के प्रति अंग्रेजी व्यवहार से असंतोष बढ़ा। अधिकांश प्रभावशाली मुस्लिम नेता भी जेल में थे। भारतीय सेना पर अंग्रेजी निर्भरता बढ़ रही थी और भारत का औद्योगिक तथा मध्यम शिक्षित वर्ग अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीतियों के दुष्परिणामों से दुखी था वे भी उग्र राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन करने को तैयार थे। अप्रैल, 1916 में तिलक ने होम रूल आंदोलन आरंभ किया। होम रूल अर्थात् स्वराज्य का अभिप्राय इस समय अंग्रेजी साम्राज्य को समाप्त करना नहीं था। इसका अर्थ था अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन स्वायत्तता प्राप्त करना। इंग्लैंड के अधीन भारतीय क्षेत्र में भी उसी प्रकार आंतरिक प्रशासन के स्वायत्तता उपलब्ध हो जिस प्रकार भारतीय राज्यों में थी। 1919 में तिलक ने पेरित शांति सम्मेलन में भारत के भाग लेने के अधिकार तथा विल्सन के आत्मनिर्णय के सिद्धान्त के आधार पर भारत के लिए भी इसी अधिकार की मांग प्रस्तुत की। वह खिलाफत आंदोलन के समर्थक थे। तिलक और ऐनिबेसेंट के होम रूल आंदोलन के अभिप्राय का अन्तर दोनों के उस कार्य से स्पष्ट होगा जो 1918 के बाद दोनों नेताओं ने किया। ऐनिबेसेंट भारतीय राजनीतिक रंगमंच से एकदम हट गई और उन्होंने किसी अन्य राजनीतिक आंदोलन में सक्रिय भाग नहीं लिया।

Keywords: राष्ट्रवादित, उबलता जनआक्रोश, आधुनिक भारत, 19वीं सदी

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