राजस्थान में सूखा व अकाल: समस्या तथा समाधान
Author(s): चित्रा मीणा
Publication #: 2407016
Date of Publication: 01.04.2023
Country: India
Pages: 65-68
Published In: Volume 9 Issue 2 April-2023
Abstract
राजस्थान की भौगौलिक स्थिति अकाल व सूखे का पर्याय बन गयी है राज्य में अकाल की भीषणता का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ 11 वी सदी में लगातार 12 वर्षों तक अकाल चला। यहाँ विभिन्न वर्षो में अकाल व सूखे की स्थिति रही है यह अकाल अनाज, पानी व चारा के रूप में त्रिकाल कहलाता है इससे न केवल मानव बल्कि पशु-पक्षी सभी प्रभावित होते है। सूखा शब्द का अर्थ है वर्षा की कमी। अतः जब-जब राज्य में वर्षा मी कमी होती है। तो मिट्टी में नमी के कम होने से वनस्पति व फसल का उत्पादन नहीं होता है। जिससे पानी अन्न व चारा भी कमी हो जाती है। यह स्थिति अकाल में परिवर्तित हो जाती है। पश्चिमी राजस्थान में सूखा व अकाल स्थायी क्षेत्र है। पूर्वी राजस्थान व दक्षिणी भाग में अस्थाई होता है। इस स्थिति के लिए प्राकृतिक व मानवीय दोनों कारक उत्तरदायी होते है प्राकृतिक कारकः स्थलाकृति, विषम जलवायु, वर्षा की अनियमितता व अनिश्चितता, वनों का अभाव आदि । मानवीय कारकः वनों का दोहन, भूजल दोहन, कृषि भूमि के उपयोग से अपरदन आदि। इस अकाल के अस्थायी व स्थायी दोनों समाधान सरकारी प्रयासों द्वारा ही किये जाते है। अब सरकार के प्रयासों से अकाल में मानव व पशुधन की मृत्यु बहुत कम होती है। अकाल की अपेक्षा अब अभावग्रस्त क्षेत्र ज्यादा पाये जाते हैं।
Keywords: अकाल, सुखा, चारा, पानी, अनाज, वनविनाश, प्राकृतिक, आधारभूत सुविधाये, विषम जलवायु ।
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