जाति-संरचना पर संस्कृतिकरण का प्रभाव

Author(s): डॉ. अंजना वर्मा

Publication #: 2407009

Date of Publication: 05.12.2020

Country: India

Pages: 24-29

Published In: Volume 6 Issue 6 December-2020

Abstract

ग्रामीण जाति-व्यवस्था में परिवर्तन की प्रक्रिया को प्रो. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की अवधारणा की सहायता से स्पष्ट किया है । परम्परागत ग्रामीण समुदाय में जातीय आधार पर एक ऐसा संस्तरण पाया जाता था जिसमें अनेक प्रकार के निषेधों द्वारा प्रत्येक जाति अपने आचरणों अथवा व्यवहार-प्रतिमानों में एक-दूसरे से पृथक् थी तथा किसी भी जाति को दूसरी जाति की जीवन-शैली का अनुकरण करने की अनुमति प्राप्त नहीं थी । संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के माध्यम से प्रो. श्रीनिवास ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया कि जातिगत कठोरता के होते हुए भी जाति-व्यवस्था के अन्तर्गत परिवर्तन की प्रक्रिया सदैव विद्यमान रही है । संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के रूप में निम्न जातियाँ सदैव अपने से उच्च जातियों के व्यवहार - प्रतिमानों अथवा उनकी जीवन-शैली का अनुकरण करती रही हैं। जिस क्षेत्र में जो प्रभु जाति होती है उसी को श्रेष्ठ मानकर अन्य जातियाँ उसका अनुकरण करने लगती हैं। इस प्रकार अनुकरण का प्रतिमान केवल ब्राह्मण जातियाँ ही नहीं होतीं बल्कि क्षत्रिय एवं वैश्य जातियाँ भी होती हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत निम्न जातियों के व्यक्ति अपने नामों, वेश-भूषा, व्रत-त्यौहारों, कर्मकाण्डों तथा शिष्टता के तरीकों में उच्च जातियों की दिशा में परिवर्तन करने लगती हैं जिसके फलस्वरूप जातिगत पृथक्ता तथा निषेधात्मक कट्टरता में कमी होने लगती है ।

Keywords: संस्कृतिकरण, संस्तरण, प्रभु जाति, जीवन-शैली, जाति-संरचना, व्यवहार – प्रतिमान।

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