भारतीय समाज में वृद्धजनों की स्थिति की विवेचना
Author(s): डॉ. अंजना वर्मा
Publication #: 2407008
Date of Publication: 04.09.2020
Country: India
Pages: 15-20
Published In: Volume 6 Issue 5 September-2020
Abstract
इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राचीनकाल में वृद्धों की स्थिति अत्यंत उन्नत एवं सम्मानीय रही है, उनका समाज एवं परिवार में अलग वर्चस्व था, पूरे परिवार की बागडोर उनके हाथों में हुआ करती थी । परिवार के सभी सदस्य उनकी सलाह व फैसलों को आधार मानकर काम करते थे। यही वजह थी कि प्राचीन समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे वे परिवार के सभी सदस्यों को एक धांगे में बाँध कर रखते थे।
परन्तु आज आधुनिकता की दौड़ में निरन्तर आगे बढ़ते हुये हम पारम्परिक संयुक्त परिवार की अवधारणा को प्रगति के चक्कर में भूलते जा रहे है अब परिवार की परिभाषा पति-पत्नी और बच्चों के संकुचित दायरे में सिमटकर रह गई है। शहरों में तो संयुक्त परिवार का ढाँचा पहले ही टूट गया है, लेकिन गाँव में भी बुजुर्गों के सामने अकेले रह जाने की स्थितियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण रोजगार, धन्धों की तलाश में ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर तेजी से होने वाला पलायन है। युवावस्था में स्वतंत्रता की आधुनिक चाह ने बुजुर्गों को एकाकीपन का अभिशाप अनजाने में दे दिया है। नई पीढ़ी नहीं चाहती कि उसे बड़े होने पर खासकर विवाह के बाद बडे-बुजुर्गों के साथ रहना पडे । अमीर हो या गरीब का बुढ़ापा अभाव का पर्यापवाची है। कोई रोटी का मोहताज है तो कोई छत का। किसी को अकेलापन कचोटता है, तो किसी को अपनों का तिरस्कार। कोई अपहित है तो कोई अपमानित और बेबस महसूस करता है। पैसे की कमी ही एक वजह नहीं है इसके साथ बदलते समाज के बदलते जीवन मूल्यों ने भी कई वृद्धों को समाज में हाशिए पर ला खड़ा किया है।
Keywords: वृद्धावस्था, वृद्धों की स्थिति, कानूनी प्रावधान, समस्या ।
Download/View Count: 558
Share this Article