भारतीय राष्ट्रवाद: आधुनिक परिपेक्ष मेें एक अध्ययन
Author(s): बुद्वि प्रकाश रेगर
Publication #: 2406046
Date of Publication: 22.06.2024
Country: India
Pages: 1-3
Published In: Volume 10 Issue 3 June-2024
Abstract
राष्ट्रवाद के बारे में यह कहा जाता है कि इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। इसे समय एवं परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। पश्चिम का राष्ट्रवाद जो कि धर्म, भाषा या क्षेत्र पर आधारित रहा हैं। इसे भारत अमेरिका एवं चीन जैसे विविधता पूर्ण राष्ट्रों पर लागू नहीं किया जा सकता है इन राष्ट्रों में सांस्कृतिक एवं सभ्यतात्मक राष्ट्रवाद हमेशा विद्यमान रहा है इसीलिए यह राष्ट्र हजारों वर्षों तक एकता के सूत्र में बध्ंो रहे है।ं विभिन्न बाहरी शक्तियों द्वारा आक्रमण एवं साम्राज्य के बाद भी भारत अपनी एकता को बनाए रखने में सक्षम रहा हैं हालांिक अगं ्रेजों की कुटिल चाल विभाजित करो और राज करो के कारण धार्मिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ जो लंबे समय तक सही साबित नहीं हुआ। सन् 1971 में ही बाग्ंलादेश के रूप में पाकिस्तान का विभाजन भाषा के आधार पर हो गया हैं। अतः यह कहा जा सकता हैं कि भारत में सांस्कृतिक एवं सभ्यतात्मक राष्ट्रवाद हमेशा विद्यमान रहा है तथा इसी भावना के कारण आगे भी भारत अक्षण्णु बना रहेगा।
Keywords: भारत, राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता, ब्रिटिश शासन, सांस्कृतिक
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