पंथनिरपेक्षता एवं भारतीय लोकतन्त्र
Author(s): Mitha Ram
Publication #: 2308027
Date of Publication: 12.08.2023
Country: India
Pages: 1-5
Published In: Volume 9 Issue 4 August-2023
Abstract
भारतीय संविधान द्वारा भारत को पंथ निरपेक्ष राज्य घोषित किया है। भारत विविध धर्मों, पंथों एवं जातियों का देश है। यहाँ पर सभी धर्मों के लोगों को कानून के समक्ष समानता एवं कानून का समान संरक्षण दिया गया है। यहाँ पर किसी नागरिक के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया जा सकाता है। सभी नागरिकों को अवसर की समानता का दर्जा दिया गया है। 42 वें संविधान संशोधन में भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता की अवधारणा संविधान के मूल पाठ का एक महत्वपूर्ण भाग थी, पर इसका स्वरूप अप्रत्यक्षता सा था।
भारतीय संविधान में धर्म अथवा जाति का भेदभाव किए बिना प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। भारत में राज्य का कोई धर्म नहीं है, इसलिए वह धर्मतंत्रात्मक राज्य से भिन्न है। राज्य पंथ को व्यक्ति के आन्तरिक विश्वास की वस्तु समझता है तथा पंथ और राजनीति की पृथकता में विश्वास करता है।
भारतीय लोकतन्त्र एवं पंथ निरपेक्षता:-
आधुनिक भारत के निर्माता पं. जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्र की स्वाधीनता के प्रारंभिक काल में लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मान्यताओं की संविधान तथा संविधानवाद के माध्यम से स्थापना कर लोकतन्त्र को पुष्पित एवं पल्लवित कर उसकी जड़ें मजबूत करने में अहम भूमिका निभायी। इसी का परिणाम है कि स्वाधीनता के 6 दशकों के बाद भारत का लोकतन्त्र पूरी तरह से परिपक्व दिखायी देता है और विश्व के स्थापित लोकतन्त्रों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है और उसे विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के रूप में पहिचाना जाने लगा है। इसका सबसे अधिक श्रेय पं. नेहरू को ही जाता है, क्योंकि भारत में पूर्व में इस प्रकार के लोकतांत्रिक संस्थाओं का अस्तित्व नहीं था और यहाँ की तत्कालीन राजनीतिक संस्कृति भी इस प्रकार की नहीं थी लेकिन पं. नेहरू के प्रयास से देश में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना हो सकी थी।
पं. नेहरू, रविन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में ‘‘भारत के ऋतुराज’’ तथा आचार्य नरेन्द्र देव के लिए ‘‘लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रतीक’’ थे। नेहरू जी ने ही भारत को न केवल स्वतन्त्र करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया बल्कि आने वाले वर्षों में भारत का मार्ग भी निर्धारित किया।
Keywords: संविधान की प्रस्तावना- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त किया गया है कि सभी नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता दी गयी है।
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