contact@ijirct.org      

 

Publication Number

2307004

 

Page Numbers

1-3

Paper Details

कालिदास साहित्य कृत मेघदूतम् में मेघ-यात्रा एक अध्ययन

Authors

Dr Deepak Singh Rathore

Abstract

वस्तुतः कालिदास प्राकृतिक, सामाजिक, नैतिक, या व्यावहारिक पक्षों के वर्णन में अभावग्रस्त कवि नहीं हैं बल्कि उनकी कविताचातुरी और नैपुण्य नें अन्यों को भी समृद्ध बनाया है । सैद्धान्तिक पक्ष भी क्षुण्ण जैसा प्रतीत होता है । जीवन दर्शन, जीवन बोध, अन्तर्निहित ज्ञान तथा विज्ञान शब्द के शब्द बोध से परिचित कवि कालिदास ने परवर्ती साहित्य को न केवल गाम्भीर्य प्रदान किया, अपितु वर्णन कौशल की ऐसी पराकाष्ठा का पाठ भी पढ़ाया जिसमें काव्य साहित्य की अन्यान्य विधाओं का समावेश भी हो । ‘‘कीर्तिर्यस्य स जीवति’’ का सिद्धान्त ही कालिदास के विषय में अमरत्व का एकमात्र प्रमाण है। जीवन दर्शन, जीवन बोध, अन्तर्निहित ज्ञान तथा विज्ञान शब्द के शाब्द बोध से परिचित कवि कालिदास ने परवर्ती साहित्य को न केवल गाम्भीर्य प्रदान किया, अपितु वर्णन कौशल की ऐसी पराकाष्ठा का पाठ भी पढ़ाया जिसमें काव्य साहित्य की अन्यान्य विधाओं का समावेश भी हो । ‘‘कीर्तिर्यस्य स जीवति’’ का सिद्धान्त ही कालिदास के विषय में अमरत्व का एकमात्र प्रमाण है । मेघदूत के दो भाग है - पूर्वमेघ और उत्तरमेघ । पूर्वमेघ में प्रारम्भिक विषय वस्तु के माध्यम से कवि ने यक्ष परिचय और मंगलाचरण का भी निर्वाह किया है । मेघोदूतो यस्मिन काव्ये तत् मेघदूतम् । अथवा मेघ एव दूतो मेघदूतः, मेघश्चासौ दूतः मेघदूतः । तमधिकृत्य कृतं काव्यं मेघदूतम् । अर्थात् जिस काव्य में मेघ को दूत बनाया गया है वह काव्य मेघदूत है अथवा मेघ ही दूत हो जिसमें वह मेघदूत है या यह मेघ दूत है जिसे अधिकृत करके लिखा गया काव्य मेघदूत है। कूटशब्दरू- अन्तर्निहित, अक्षुण, सैद्धान्तिक, परवर्ती, मर्मस्पर्शी, रसाभास, दशार्णेश, प्रभातकालीन । प्रस्तावनाः- ऐतिहासिक प्रमाणों में कालिदास के जीवन सम्बन्धी मतैक्यता का सर्वथा अभाव है । कालिदास कौन थे ? कहॉ के थे ? कहॉ कहॉ गये थे ? ऐसा निश्चय करना कठिन और दुष्कर है । किन्तु कालिदास रचित दूत काव्य मेघदूत का अवलोकन यह प्रमाणित करता है कि उन्हें भौगोलिक परिवेश का नितान्त प्रामाणिक और जीवन्त बोध था ऐसा कहनें का तात्पर्य यह है कि जिन महत्वपूर्ण स्थलों, जिन प्राकृतिक परिवेशों के मर्मस्पर्शी और स्पष्ट वर्णन मेघदूत के पूर्वमेघ में किये गये हैं वे या तो उन सभी स्थलों की यात्रा - प्रत्यक्ष से सम्भव हैं अथवा किसी एक स्थान पर रहकर उन विभिन्न स्थानों का वैशिष्ट्य वर्णन कालिदास की केवल कल्पना भूमि से सम्भव हुए हों । यात्रा साहित्य यद्यपि हिन्दी जगत का एक समृद्ध साहित्य है तथापि संस्कृत जगत भी इससे अछूता नहीं हैं । यात्रा पठन से जो भौगोलिकता घर बैठे जीवन्त होती है वह प्रत्यक्ष रूप में अनेक उपलब्धियों के साथ प्रामाणिक होती है । एक ओर यात्रा वर्णन कवि के भौगोलिक ज्ञान को दर्शाता है तो दूसरी ओर पाठक को सहज अनुभूति के माध्यम से कला - कौशल और संस्कृति का विस्तार परिचय भी कराता है । राहुल सांकृत्यायन आदि द्वारा वर्णित यात्रा तथ्य इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं । यात्रा तो कालिदास के मेघदूत में मेघ ;बादलद्ध ने भी की है जो विरह दग्ध होकर बादल को सन्देशवाहक बनाकर रामगिरि पर्वत से अलकापुरी तक भेजता है । मेघ के इस यात्रा पथ में पर्वतों, प्राकृतिक छटाओं, नगरो,ं और उज्जयिनी की स्त्रियों आदि के जो स्वाभाविक चित्रण उपस्थित है उनसे महाकवि कालिदास की रचना - धर्मिता में एक अप्रतिम भौगोलिक वातावरण का निदर्शन और प्राकृतिक वैशिष्ट्य की उपलब्धि होती है जो एक अखण्ड रसाभास है । मेघ के यात्रा पथ मंे पर्वत, सागर, नदी, झरनें, सरोवर, वनकानन, सूर्य, चन्द्रमा, रात्रि, दिवस, लतायें, वनस्पतियॉं, तथा पशु पक्षियों के प्राकृतिक विषयों का हृदयहारी चित्रण है । विरही यक्ष शापित है, प्रिया वियोगी है, काम सन्तप्त भी है, उसकी काम सन्तप्तता ने उसे मतिहीन बनाया है जिससे वह चेतन और अचेतन का विवेक किये बिना ही बादल को अपनी प्रिया के पास सन्देश भेजनें के लिये दूत बनाता है, माध्यम बनाता है ।सर्वथा विचारणीय है कि अपार जल - राशि धारण करने वाला कोई मेघखण्ड किसी की मनोदशा का सन्देश लेकर किसी अन्य के पास कैसें पहुॅंचा सकता है ? किन्तु कालिदास के मेघ ने तो ऐसा किया है । विरही यक्ष पात्र हो सकता है प्रौढ़ नहीं । जबकि कालिदास सुपात्र भी है प्रौढ़ भी । यक्ष को चेत और अचेत का विवेक नहीं हो सकता है क्योंकि वह वर्ण्य विषय में स्वामी द्वारा दिए गए कार्यों के सम्पादन में असफल होकर शापित हो चुका है । संस्कृत साहित्य में बिम्बित यक्ष जाति सुकुमार जाति है उसके लिये प्रिया से एक वर्ष का वियोग अत्यन्त दारूण है । ऐसा होने से उसका देवत्व नष्ट है । पुनश्च काव्य प्रतिभा नें कॉंच मणि और कांचन को एक सूत्र में पिरोकर चेतन और अचेतन के बीच में सजीवता स्थापित कर संवादपूर्ण बनाते हुए प्रिया - प्रियतम संयोग कराकर सहृदय पाठक के लिए मेघयात्रा से अनुस्यूत प्राकृतिक, हृदयावर्जक और चिरस्थायी आनन्द प्रदान किया है । निश्चित स्थानपर रहकर विभिन्न प्रान्तों दूरस्थ वन प्रदेशों तथा देश विशेष की महिला संस्कृति का वर्णन इतना जीवन्त और यथार्थ होगा ................. ..... ऐसा कल्पनातीत है ।

Keywords

अन्तर्निहित, अक्षुण, सैद्धान्तिक, परवर्ती, मर्मस्पर्शी, रसाभास, दशार्णेश, प्रभातकालीन ।

 

. . .

Citation

कालिदास साहित्य कृत मेघदूतम् में मेघ-यात्रा एक अध्ययन. Dr Deepak Singh Rathore. 2023. IJIRCT, Volume 9, Issue 4. Pages 1-3. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2307004

Download/View Paper

 

Download/View Count

21

 

Share This Article