कालिदास साहित्य कृत मेघदूतम् में मेघ-यात्रा एक अध्ययन

Author(s): Deepak Singh Rathore

Publication #: 2307004

Date of Publication: 06.07.2023

Country: India

Pages: 1-3

Published In: Volume 9 Issue 4 July-2023

Abstract

वस्तुतः कालिदास प्राकृतिक, सामाजिक, नैतिक, या व्यावहारिक पक्षों के वर्णन में अभावग्रस्त कवि नहीं हैं, बल्कि उनकी कविताचातुरी और नैपुण्य नें अन्यों को भी समृद्ध बनाया है । सैद्धान्तिक पक्ष भी क्षुण्ण जैसा प्रतीत होता है । जीवन दर्शन, जीवन बोध, अन्तर्निहित ज्ञान तथा विज्ञान शब्द के शब्द बोध से परिचित कवि कालिदास ने परवर्ती साहित्य को न केवल गाम्भीर्य प्रदान किया, अपितु वर्णन कौशल की ऐसी पराकाष्ठा का पाठ भी पढ़ाया जिसमें काव्य साहित्य की अन्यान्य विधाओं का समावेश भी हो । ‘‘कीर्तिर्यस्य स जीवति’’ का सिद्धान्त ही कालिदास के विषय में अमरत्व का एकमात्र प्रमाण है।

जीवन दर्शन, जीवन बोध, अन्तर्निहित ज्ञान तथा विज्ञान शब्द के शाब्द बोध से परिचित कवि कालिदास ने परवर्ती साहित्य को न केवल गाम्भीर्य प्रदान किया, अपितु वर्णन कौशल की ऐसी पराकाष्ठा का पाठ भी पढ़ाया जिसमें काव्य साहित्य की अन्यान्य विधाओं का समावेश भी हो । ‘‘कीर्तिर्यस्य स जीवति’’ का सिद्धान्त ही कालिदास के विषय में अमरत्व का एकमात्र प्रमाण है । मेघदूत के दो भाग है - पूर्वमेघ और उत्तरमेघ । पूर्वमेघ में प्रारम्भिक विषय वस्तु के माध्यम से कवि ने यक्ष परिचय और मंगलाचरण का भी निर्वाह किया है । मेघोदूतो यस्मिन काव्ये तत् मेघदूतम् । अथवा मेघ एव दूतो मेघदूतः, मेघश्चासौ दूतः मेघदूतः । तमधिकृत्य कृतं काव्यं मेघदूतम् । अर्थात् जिस काव्य में मेघ को दूत बनाया गया है वह काव्य मेघदूत है अथवा मेघ ही दूत हो जिसमें वह मेघदूत है या यह मेघ दूत है जिसे अधिकृत करके लिखा गया काव्य मेघदूत है।

Keywords: अन्तर्निहित, अक्षुण, सैद्धान्तिक, परवर्ती, मर्मस्पर्शी, रसाभास, दशार्णेश, प्रभातकालीन

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