भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्वों की प्रासंगिकता

Author(s): डॉ. ओमप्रकाश सोलंकी

Publication #: 2305023

Date of Publication: 27.05.2023

Country: India

Pages: 1-3

Published In: Volume 9 Issue 3 May-2023

Abstract

संविधानिक दृष्टि से भारतीय लोकतन्त्र की सफलता और असफलता का अनुमान नीति निर्देशक तत्वों की सफलता से लगाया जा सकता है। जिसके अन्तर्गत यह देखना की क्या भारत के सत्तारूढ़ अभिजन ने संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदत्त सामाजिक आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपेक्षित नीतियों का निर्माण किया है अथवा नही? और यदि किया है तो वह किस सीमा तक सफल रही है, क्योकि ब्रिटिश शासन से हमने राजनीतिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली थी, परन्तु सामाजिक व आर्थिक क्रान्ति की यात्रा प्रारम्भ करना शेष था। स्वतंत्रता के पश्चात भारत के शासक अभिजन वर्ग ने सामान्य व्यक्ति के लिए रोजगार उपलब्ध कराने के लिए क्या व्यवस्था की है? सदियों से पीड़ित शोषित वर्ग को संविधान निर्माताओं की आशा के अनुरूप क्या हम न्याय दिला पाये है। इन प्रश्नों से हम नीति निर्देशक सिद्धान्तों का आंकलन कर सकते हैं? लेकिन जहां तक निर्दशक सिद्धान्तों के रूपान्तरण का प्रश्न है सरकार द्वारा इस क्षेत्र में कारगर कदम उठाये गये है। भूमि सुधार अधिनियम, हिन्दू कोड़ बिल, सम्पति के मौलिक अधिकार, अस्पृशयता उन्मूलन, अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना, बंधुवा मजदूरी, बालश्रम उन्मूलन कानून बनाना आदि-आदि। इसका तात्पर्य है कि सरकार संविधान निर्माताओं के सपने को साकार करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। इस कार्य को साकार करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। किन्तु इस यथार्थ से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि आजादी के 72 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात भी अब तक हम इच्छित लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहे है।

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