आरक्षण हेतु सामाजिक आन्दोलन एवं उनका शांतिपूर्वक समाधान
Author(s): डॉ. ओमप्रकाश सोलंकी
Publication #: 2305021
Date of Publication: 27.05.2023
Country: India
Pages: 1-5
Published In: Volume 9 Issue 3 May-2023
Abstract
भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् समाजवादी विचारधारा के अनुरूप समाज में व्याप्त वर्णभेद की विषमता को हटाने के लिए कई प्रयास किये गये और किये जा रहे हैं। इसी मूल भावना को ध्यान में रख कर ही हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के संविधान में दलित एवं पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आरक्ष्ज्ञण का कानूनी प्रावधान रखा था। भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया। प्रारम्भ में दस वर्ष के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी इसके पश्चात् इस पर पुनर्विचार करने का प्रावधान रखा गया था। आरक्षण सुविधा मिलने के साथ-साथ आरक्षित वर्ग संगठित होता चला गया और सरकार द्वारा इस नीति को जारी रखने के लिए लगाता दबाव बनाये रखा। प्रत्येक राजनीतिक दल चाहे व सŸाा में हो या फिर विपक्ष में इस नीति को जारी रखने की हिमायत की।
संवेदनशील मामल होने के कारण किसी भी सरकार द्वारा इसे समाप्त करने या इसके प्रावधानों में संशोधन का साहस नहीं जुटाया। प्रारम्भ में आरक्षण के तहत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई बाद में इसमें कई अन्य जातियों को भी शामिल किया गया। आरक्षण का लाभ प्राप्त करके इन वर्गों के कई लोग उच्च पदों तक पहुंचे हैं तथा उनके सामाजिक स्तर में परिवर्तन देखने को मिला है। सरकारी तंत्र में दलित एवं पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व मिलने से इन लोगों के सामाजिक जीवन मे काफी बदलाव देखे जा सकते हैं।
Keywords: आरक्षण, आन्दोलन, सामाजिक असमानता, संविधान, राजनीतिक दल, गांधीय चिंतन।
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