सतत् विकास की संकल्पनाः पर्यावरण एवं आधुनिक विकास के बीच सामंजस्य-संतुलन
Author(s): अजय राजपुरोहित
Publication #: 2305011
Date of Publication: 17.05.2023
Country: india
Pages: 1-4
Published In: Volume 9 Issue 3 May-2023
Abstract
”अन्तिम वृक्ष को काट दिये जाने के बाद.....
अन्तिम नदी को विषाक्त करने के बाद......
अन्तिम मछली पकड़ लिये जाने के बाद......
हम पाएंगे कि पैसे को खाया नहीं जा सकता है“
उपयुक्त वाक्य पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय, भारत सरकार की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21 के मुख्य पृष्ठ पर अंकित है। ये सतत् विकास की आवश्यकता को बेहतर ढंग से निरूपित करते हैं। ये संदेश देते हैं कि आर्थिक प्रगति तभी संपोषणीय हो सकती है, जब पर्यावरण और विकास में बेहतर संतुलन हो। सतत् विकास उसे कहते हैं जिसमें भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता से कोई समझौता किए बगैर अपनी वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। सतत् विकास वास्तव में साधन सम्पन्न लोगों की तुलना में साधनहीन लोगों तथा वर्तमान पीढ़ी से अधिक भावी पीढ़ी को महŸव देता है।
भारत सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये अर्न्तराष्ट्रीय समझोतो एवं अभिसमयों का अनुपालन करने में कभी पीछे नहीं हटा है। भारत ने जलवायु परिवर्तन सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा अभिसमय ;न्छथ्ब्ब्ब्द्ध पर हस्ताक्षर किया है। भारत ने जैव-विविधता सम्बन्धी अभिसमय ;ब्ठक्द्धपर भी हस्ताक्षर किया है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत न केवल अपने नागरिकों की जीवन गुणवŸाा में सुधार के प्रति प्रतिबद्ध है, बल्कि सतत् विकास के लिये अर्न्तराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर सक्रिय भी है। भारत में गरीबी निवारण के लिये कई लक्षित योजनाओं कार्यक्रमों एवं नीतियों की शुरूआत की गई है। या तो प्रत्यक्ष रूप से रोजगार सृजन, प्रशिक्षण या गरीबों के लिये परिसम्पŸिायों के निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है। या अप्रत्यक्ष रूप से मानव विकास विशेषकर शिक्षा स्वास्थ्य एवं महिला सशक्तिकरण पर बल दिया जा रहा है। विŸाीय समावेशन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वन, प्रदूषण नियन्त्रण, जल प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, समुद्री एवं तटीय पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न नीतियों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
Keywords: .
Download/View Count: 233
Share this Article