तुलसी की वर्तमान नारी जागरूकता में प्रासंगिकता :एक अध्ययन
Author(s): Om Prakash Rathour
Publication #: 2305005
Date of Publication: 17.05.2023
Country: India
Pages: 1-3
Published In: Volume 9 Issue 3 May-2023
Abstract
तुलसी ईश्वरोन्मुख व्यक्ति को चाहे वह स्त्री हो या पुरूष, जड़ हो या चेतन, भगवान का अत्यधिक प्रिय मानते हैं। ‘राम भगति रत नर अरू नारी, सकल परम गति के अधिकारी’ कहकर तुलसी ने भक्त रूप में नारी को मोक्ष की अधिकारिणी माना है। चाहे वह अहिल्या द्वारा राम की चरणधूलि प्राप्त् करने से मुक्ति का प्रसंग हो या रावण की मृत्यु के बाद मंदोदरी का विलाप- जो विलाप न होकर भगवान के प्रति स्तुति गान ही अधिक है ‘मैं तुलसी राम-रत स्त्री की छवि को ऊँचा आदर्श होता है’ वास्तव में राम जब यह कहते हैं-
‘पुरूष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोई।
सर्वभाव भज कपट तजि मोहि पर प्रिय सोई।।’(1)
तब यह साबित हो जाता है कि तुलसी की दृष्टि में भक्ति के क्षेत्र में नारी भी सदा स्तुत्य, मंगलमय और कल्याणकारी है।
राम की भक्ति से सम्पन्न नारी का सत् रूपः-
तुलसी की नारी संबंधी भावना उनके दार्शनिक मतवाद पर आधारित थी। उन्होंने शंकराचार्य के समान माया का केवल विधारूप ही नहीं देखा था वरन् उसका दूसरा पक्ष जो जगत को उत्पन्न करने वाली आदिशक्ति स्वरूप प्रभु की महामाया है, भी देखा था। वे महान लोक साधक थे, उनका विश्वास था कि वही कीर्ति, वही कविता और और वही कविता और वही सम्पदा उत्तम है, जो गंगा की भाँति सबका समान हित करने वाली है। ठीक उसी प्रकार उन्हें नारी का वह स्वरूप वांछनीय है, जो प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों पर आधारित नारी के श्रेष्ठतम धर्म पतिव्रत से संयुक्त हृदय की महानतम विभूतियाँ त्याग, सेवा, ममता, कर्तव्यारूढ़ता, पति प्रेम परायणता और नारियोचित संपूर्ण शील एवं मर्यादा से आवेष्टित तथा जगत कल्याण की सुषमा से परिपूर्ण हो। मानवीय चरित्र के दो रूप स्पष्टतः ही दृष्टिगोचर होते हैं- एक वे जो लोक केवल अपने निजी हित एवं स्वार्थ साधना में निरत यथार्थ की संकुचित सीमाओं में आबद्ध असत् रूप हैं। तुलसीदास के साहित्य में मानवीय चरित् की इन दोनों रूपों की अभिव्यक्ति हुई है। स्त्री पात्रों में सीता, पार्वती और कौशल्या सत् कोटि की पात्र हैं जबकि सूर्पनखा और मंथरा की गणना असत् पात्रों में की जाती हैं। इसके साथ ही कुछ पात्र परिस्थितियों के साथ व्यवहार करते हैं कैकेयी ऐसा ही चरित्र है। वह वास्तव में सत् पात्र ही है। उसके चरित्र की ईर्ष्या, द्वेष, डाह, क्रोध, निष्ठुरता और स्वार्थपरता की भावनाओं की अभिव्यक्ति परिस्थितियों की आकस्मिकता के कारण उद्भूत हुई है।
Keywords: ‘मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी। अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सेा नारी जो सेव न तेही।।’(2
Download/View Count: 252
Share this Article