भारत के संस्कृत साहित्य में कल्पसूत्रों का योगदान

Author(s): Ramesh Chand Verma

Publication #: 2302014

Date of Publication: 13.04.2023

Country: India

Pages: 1-2

Published In: Volume 9 Issue 2 April-2023

Abstract

हिन्दू धर्म के समस्तकर्म, संस्कार, अनुष्ठानतथारीतिनीतियाँ प्रायः कल्पसूत्रांे से हीहोने के कारण संस्कृति के स्वरूपको समझने के ये एकमात्र अवलम्बनहैं।कल्पसूत्रांे का आधारशिलाकर्मकाण्डहै। भारतवर्ष के प्राचीनइतिहास का अध्ययन करने से हमेंज्ञातहोताहैकिसम्पूर्णवेदांगसाहित्य मंे ‘कल्प’ का स्थानप्राथमिकहै। यज्ञीय विधियांे का प्रतिपादन इस वेदांगमंेकियागया। इस शब्द का अर्थभीइसीप्रकारप्रस्तुतकियागयाहै- ‘वैदिककर्मांेकोक्रमबद्ध व्यवस्थितकल्पनाकरनेवाला शास्त्र कल्पहै’ (कल्पो वेदविहितानांकर्मणामनुपूर्व्येणकल्पना शास्त्रम्)ं। सायण ने भी ‘कल्प’ का लगभग यहीअर्थकियाहै- ‘यज्ञीय प्रयोगांे का समर्थनतथाप्रतिपादनकरने के कारण से ‘कल्प’ है।1 ये कल्पसूत्र अपनेविषय-प्रतिपादनमंेब्राह्मणांेऔरआरण्यकांे से सम्बद्ध होने के कारणप्राचीनतमभीमानेजातेहैं।प्रत्येकसंहिता के अलग-अलगकल्पसूत्र प्राप्तहोतेहैं।

Keywords: श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र तथा शुल्बसूत्र।

Download/View Paper's PDF

Download/View Count: 228

Share this Article