गांधीवादी दर्शन का वर्तमान अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
Author(s): Vimla Kumari
Publication #: 2302013
Date of Publication: 13.04.2023
Country: India
Pages: 1-3
Published In: Volume 9 Issue 2 April-2023
Abstract
वैश्वीकरण के नाम पर शुरू हुए आर्थिक सुधारों से गरीबी, मूल्यवृद्धि, बेरोजगारी, विषमता, अपराध, उपभोक्ता संस्कृति आदि में वृद्धि हुयी है। मात्र लाभ कमाने के लिए बाजार अर्थव्यवस्था में उत्पादन किया जा रहा है और प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रकृति से अन्याय हो रहा है। गांधीजी ने प्रकृति एवं मनुष्य के नैसर्गिक सम्बन्धों, स्थायीविकास एवं समुचित तकनीक पर जोर दिया। गांधीवादी दर्शन सादगीपूर्ण जीवन शैली स्वदेशी की भावना और विकेन्द्रीकरण पर बल देता है। समकालीन वैश्वीकरण के दौर में गांधीवादी दर्शन का महत्व और अधिक बढ़ गया है। वैश्वीकरण केनाम पर शुरू हुए आर्थिक सुधारों से गरीबी, मूल्यवृद्धि, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, अपराध, उपभोक्ता संस्कृति,नगरीकरण, केन्द्रीकरण आदि प्रवृत्तियों में वृद्धि हुयी है। इन विभिन्न समस्याओं का हल गांधीवादी प्रतिमान के अन्तर्गत मिलता है। सत्य व अहिंसा पर आधारित गांधीवादी प्रतिमान सभी समस्याओं के लिए नैतिक युक्ति प्रस्तुत करता है। गांधीवादी दर्शन सादगीपूर्ण जीवन शैली, स्वदेशी की भावना, विकेन्द्रीकरण, मानव श्रम प्रधानग्राम अर्थव्यवस्था, बुनियादी रोजगारपरक शिक्षा, आत्मनिर्भर राष्ट्र, प्रन्यास भावना जैसे सिद्धान्तों पर आधारित है।इस गांधीवादी प्रतिमान को यदि वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अपना लिया जाए तो एक सुखद एव ंन्यायपूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है। क्योंकि भौतिक समस्याओं के नैतिक निदान पर आधारित यह दर्शन विश्व को एक नवीन दृष्टि प्रदान करता है।
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