भारतीय संविधान एवं नौ वीं अनुसूची
Author(s): Bharat Das Vaishnav
Publication #: 1905001
Date of Publication: 20.10.2019
Country: India
Pages: 1-4
Published In: Volume 5 Issue 5 October-2019
Abstract
भारतीय संविधान में उल्लेखित नौवीं अनुसूची संविधान की अनोखी विशेषता है। यह मूल संविधान का भाग नहीं थी। इसे प्रथम संविधान संशोधन द्वारा 1951 में जोड़ा गया था। इसे अनोखी विशेषता इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा यह प्रावधान किया गया कि इसमें कुछ ऐसी विधियां शामिल है जो संविधान के साथ असंगत होने के बावजूद भी उन्हें न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। न्यायिक समीक्षा न्यायपालिका का संविधान प्रदत्त क्षेत्राधिकार होने के बावजूद भी कुछ विधियां इस अनुसूची के द्वारा न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दी गई है। हम यहां पर संविधान की इस अनोखी विशेषता की विस्तृत चर्चा कर रहे हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व देश के कई भागों में जमींदारी प्रथा का प्रचलन था। जिसके अन्तर्गत कृषि कार्य करने वाले लोग व खेतों के मालिक अलग-अलग थे। जमींदारी प्रथा शोषण का एक प्रचलित रूप थी। सामाजिक व आर्थिक न्याय के अभाव में लोकतांत्रिक आदर्शों को वास्तविकता में लागू नहीं किया जा रहा था। 26 जनवरी, 1950 को संविधान भी लागू हो गया था। जिसमें प्रस्तावना व नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत विस्तार से सामाजिक, आर्थिक न्याय का उल्लेख है। लोकतांत्रिक आदर्श व संवैधानिक आदर्श प्राप्त करना नीति निर्माताओं के समक्ष चुनौती था।
ऐसी स्थिति में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपने राज्यों में इन आदर्शों की स्थापना हेतु कृषि सुधार कानून बनाये गये और लागू किये गये। इधर दूसरी ओर अनुच्छेद 31 के अन्तर्गत सम्पत्ति के अधिकार का उल्लेख भी मौलिक अधिकार के रूप में था। राज्यों द्वारा बनाये गये भूमि सुधार कानूनों को उच्च न्यायालयों में चुनौति दी गई। 1951 में कामेश्वर सिंह बनाम् बिहार राज्यख्1, के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने बिहार भूमि सुधार कानून को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुये असंवैधनिक घोषित कर दिया। इधर दूसरी ओर इलाहाबाद व नागपुर उच्च न्यायालयों ने कृषि सुधारों को सही ठहराया। इस पर पीड़ित पक्ष ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। जबकि कुछ लोगों ने अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।
Keywords: भारतीय संविधान में उल्लेखित नौवीं अनुसूची संविधान की अनोखी विशेषता है। यह मूल संविधान का भाग नहीं थी। इसे प्रथम संविधान संशोधन द्वारा 1951 में जोड़ा गया था। इसे अनोखी विशेषता इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा यह प्रावधान किया गया कि इसमें कुछ ऐसी विधियां शामिल है
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