विष्नोई पंथ के प्रवर्त्तक गुरु जाम्भोजी का सामाजिक चिन्तन एवं मूल्य

Author(s): डॉ. पुष्पा विश्नोई

Publication #: 1902004

Date of Publication: 20.03.2019

Country: India

Pages: 16-20

Published In: Volume 5 Issue 2 March-2019

Abstract

गुरु जाम्भोजी अपने युग के महान् संत, विचारक, प्रेरक एवं प्रभावशाली समाज-सुधारक थे। विष्नोई पंथ के प्रवर्त्तक गुरु जाम्भोजी का जन्म जोधपुर राज्य के नागौर परगने के पींपासर नामक ग्राम में भाद्रपद कृष्णा 8 संवत् 1508 (1451 ई.) सोमवार की अर्द्धरात्रि में हुआ था। राजस्थान मंे सर्वप्रथम पंथ स्थापना का श्रेय भी गुरुजी को ही जाता है। गुरु जाम्भोजी मूलतः निर्गुण थे तथा इन्होंने अन्य संतों की भाँति समाज में जागृति फैलाने तथा लोक में चेतना के प्रसार का कार्य किया। इनकी वाणी को ’जम्भवाणी’ के नाम जाना जाता है।

गुरु जाम्भोजी ने अपनी वाणी के माध्यम से समाज में प्रचलित विषमताओं को दूर करने का सद्प्रयास किया। ‘‘व्यष्टि के समष्टि रूप को समाज कहा जाता है। मनुष्य की समस्त बाह्य एवं आन्तरिक क्रियाएँ सामाजिक व्यवहार से निर्दिष्ट होती है। यही वह काल है, जहाँ मोक्ष निर्वाण व परलोक साधना के साथ सन्तों की इहलोक के समाज की दशाओं पर दृष्टि गई। जम्भवाणी में व्यक्त विचारों से जाम्भोजी के विराट लक्ष्य का परिचय मिलता है। उनका उद्देश्य था- अज्ञान रूपी अंधकार में भटक रहे समाज को ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा पथ प्रदर्शन करना ताकि व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सके। समाज में असत् के स्थान पर सत्, बुराई के स्थान पर अच्छाई, निकृष्ट के स्थान पर उत्कृष्ट की स्थापना करना जम्भवाणी का मूल स्वर है।

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