आधुनिक शिक्षा व्यवस्था - मारवाड़ के विशेष सन्दर्भ में
Author(s): डॉ. बलवीर चौधरी
Publication #: 1901006
Date of Publication: 22.01.2019
Country: India
Pages: 18-20
Published In: Volume 5 Issue 1 January-2019
Abstract
मध्यकाल में हिन्दुओं के लिए प्राथमिक शिक्षा का केन्द्र मन्दिरों में हुआ करते थे इन विद्यालयों में प्रादेशिक भाषाओं एवं संस्कृत का अध्ययन करवाया जाता था। प्रारम्भ में गणित में पहाड़े जोड़-बाकि गुणा-भाग आदि अनिवार्य रूप से सिखाया जाता था।1 मुस्लिमों के लिए मदरसा शिक्षा के केन्द्र थे जहां धार्मिक शिक्षा दी जाती थी। कभी-कभी शासक वर्ग के लोग इन शिक्षण संस्थाओं एवं विद्वानों को जमीन दान में देते थे।2
1818 ई. में राजपूताना के शासकों ने अंग्रेजो के साथ सहायक संधियां कर रखी थी उसी समय ईसाई मिशनरियों का राजपूताना में प्रवेश हुआ उन्होंने यहां आधुनिक शिक्षा का प्रचलन शूरू किया था। राजपूताना में सर्वप्रथम अजमेर एवं पुष्कर में पादरी जावेज ने स्कूल खोले।3 उस समय मारवाड़ राज्य के शासक मानसिंह थे जो ब्रिटिश राज्य के विरोधी थे इस कारण अंग्रेजी शिक्षा का प्रश्रय नहीं दिया।
1835 ई. में लार्ड मेकाले द्वारा भारत में अंग्रेजी शिक्षा को माध्यम बनाया। तत्पश्चात् राजपूताना के पोलिटिकल एजेन्टों ने अंग्रेजी माध्यम लागू करने के लिए शासकों को प्रोत्साहित किया। राजपूताना रियासतों में सर्वप्रथम अलवर के शासक बन्नेसिंह ने अपने यहां 1842 ई. में एक विद्यालय की स्थापना की।4 जोधपुर राज्य में 1844 ई. में कर्नल आर. एस. फ्रेंच पोलिटिकल एजेन्ट बनकर आया- उन्होंने शिक्षा में रूचि दिखाई एवं महाराजा तखतसिंह को इनके लिए प्रोत्साहित किया। महाराजा ने विद्याशाला नाम से एक पाठशाला प्रारम्भ की5 परन्तु यह विद्यालय शहर से दूर होने के कारण यहां कोई विद्यार्थी ने प्रवेश नहीं लिया था। 1863 ई. में पोलिटिकल एजेन्ट के निर्देशानुसार महाराजा ने विद्यार्थियों का आवागमन हेतु बग्घियाँ चलाई6 फिर भी उस समय मारवाड़ के जन-साधारण वर्ग शिक्षा क्षेत्र में रूचि नहीं ले रहा था।
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