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Publication Number

2205010

 

Page Numbers

38-45

Paper Details

Rajasthani Laghu Chitrakala ke Sahityik Granth Rashikpriya mein Nayikabhed

Authors

Preeti Yadav

Abstract

कला जीवन की मौलिक दृष्टि है और सौन्दर्य उसका आधार है। सौन्दर्य का वास्तविक सम्बन्ध ‘भोग’ तŸव से है, दूसरा ‘रूप’ से तथा तीसरा ‘अभिव्यक्ति’ से। एक तरफ जहाँ कला का अर्थ होता है- ‘‘रूपात्मक सृजन’’ और काव्य में शब्द के माध्यम से सौन्दर्य की रचना होती है, दूसरी तरफ भारतवर्ष में काव्य के वर्ण लेखन को चित्रकला के समान महत्व प्राप्त हुआ है। मध्यकाल में तो इस विशिष्ट लेखन कला के क्षेत्र में अनेक कलाकार सिद्धहस्त हो चुके थे। उस काल में तैयार की गई कल्पसूत्र, गीतगोविन्द, भागवतपुराण, रसिकप्रिया, कविप्रिया आदि पाण्डुलिपियाँ काव्य में प्रयुक्त वर्णों की चित्रकलावत् मूर्तता सिद्ध करने का महŸवपूर्ण साधन है।

हिन्दी साहित्य का गौरवशाली काल रीतिकाल रहा है। इस काल के काव्य में राग है, अनुराग है, रस है और जीवन का उल्लास है। केशवदास को रीतिकाल का आविष्कारक आचार्य एवं उनका ग्रन्थ ‘रसिकप्रिया’ रीतिकाल का प्रसिद्ध ग्रन्थ माना जाता है, जिसमें केशव ने नायिकाभेद पर बहुत ही सुन्दर प्रकाश डाला है।
‘रसिकप्रिया’ ऐसे रूपचित्रों की सिरोमणि है, जिनके आधार पर राजस्थानी शैली के चितेरों ने राधा-कृष्ण की प्रेमत्व छवि को अपनी शैलीगत विशेषताओं के साथ अंकित किया है। कृष्ण और राधा के अंग-प्रत्यंगों की बनावट, उनके साजो-शृंगार, प्रकृति का सुनहरा वातावरण, पशु-पक्षियों का चित्रण आदि का इन रसिकप्रिया पर आधारित चित्रों में अंकित किया गया है।

अतः मैं यहाँ पर केशवकृत रसिकप्रिया पर आधारित नायिकाभेद पर बनी राजस्थानी लघुचित्रों के विभिन्न शैलियों में वर्णित उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालने का एक छोटा सा प्रयास कर रही हूँ, जिससे इनके चित्रण के विषय में कुछ महŸवपूर्ण तथ्यों का भरतीय लघु चित्रकला के परिप्रेक्ष्य में संवर्धन हो सकेगा।

Keywords

रसिकप्रिया, नायिका भेद, शृंगार रस, विरहिणी नायिका, सौन्दर्य

 

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Citation

Rajasthani Laghu Chitrakala ke Sahityik Granth Rashikpriya mein Nayikabhed. Preeti Yadav. 2022. IJIRCT, Volume 8, Issue 5. Pages 38-45. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2205010

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