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Publication Number

1902005

 

Page Numbers

21-24

Paper Details

संत साहित्य में पर्यावरण विमर्श एवं जाम्भाणी साहित्य

Authors

डॉ. पुष्पा विश्नोई

Abstract

हिन्दी शब्दकोश के अनुसार ‘विमर्श’ शब्द का अर्थ है - किसी बात का विवेचन या विचार, आलोचना, समीक्षा, परीक्षा, परामर्श। विमर्श शब्द अत्यन्त व्यापक है जिसकी उत्पत्ति मृश धातु में वि-उपसर्ग तथा घञ् प्रत्यय लगाकर हुई है। अतः विमर्श शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ विचार-विमर्श सोचना, समझना, आलोचना करना आदि है। विमर्श का कोशगत अर्थ है- चिंतन, उलट-पुलट, कतरब्योंत, चर्चा, जाँच, परख, तर्कानुतर्क, पक्ष-विपक्ष, परीक्षा, सोच-विचार, सोच-समझ, परामर्श, विचारण आदि। नालन्दा विशाल सागर में विमर्श को, ‘‘किसी बात का विचार या विवेचन, आलोचना, समीक्षा, परखने का काम, परामर्श, सलाह, अधीरता, असंतोष के अर्थ में लिया गया है। मानक अंग्रेजी-हिन्दी कोश में- ‘डेलीबरेट’ का अर्थ, ‘सुचिन्तित’ जानबूझ कर किया गया, इरादे के साथ विचारपूर्वक सोद्देश्य निश्चित और सुचिन्तित बताए गए हैं अर्थात विमर्श का अर्थ- सलाह करना, बहस करना, विचार-विमर्श, सलाह-मंत्रणा आदि है। डॉ. रोहिणी अग्रवाल के अनुसार- विमर्श का अर्थ है- जीवंत बहस। किसी भी समस्या या स्थिति को एक कोष से न देखकर, भिन्न मानसिकताओं, दृष्टियों, संस्कारों और वैचारिक प्रतिबद्धता का समाहार करते हुए उलट-पुलट कर देखना, उसे समग्रता में समझने की कोशिश करना और फिर मानवीय सन्दर्भ में निष्कर्ष - प्राप्ति की चेष्टा करना आदि।

Keywords

-

 

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Citation

संत साहित्य में पर्यावरण विमर्श एवं जाम्भाणी साहित्य. डॉ. पुष्पा विश्नोई. 2019. IJIRCT, Volume 5, Issue 2. Pages 21-24. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=1902005

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