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चौहान राजाओं का नव-वैष्णव धर्म को संरक्षण
Authors
डॉ. बलवीर चौधरी
Abstract
चौहानों के इतिहास के सम्बन्ध में पृथ्वीराज रासो, पृथ्वीराज विजय महाकाव्य, अभिलेखों एवं ताम्रपत्रों से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। उनके इतिहास का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि चौहान शासकों की व्यक्तिगत धार्मिक मान्यता चाहे कुछ भी रही हो, लेकिन वे सामान्य रूप से धर्म सहिष्णु थे। इसलिए उनके शासन काल में वैदिक, शैव, वैष्णव, शाक्त और जैन धर्म का उत्थान हुआ।
हमारी धार्मिक परम्परा के अनुसार वह सम्प्रदाय जिसके आराध्य देवता विष्णु है, वैष्णव धर्म कहलाता है।1 वैदिक साहित्य के अनुसार ऋग्वैदिक काल में विष्णु की पूजा सूर्य के रूप में की जाती थी।2 लेकिन उत्तर वैदिक काल में विष्णु एक स्वतंत्र देवता के रूप में पूजे जाने लगे।3 छठी शताब्दी ई. पू. में बौर्द्ध और जैन धर्मों का उत्थान हुआ, जिससे वैष्णव धर्म दूर पृष्ठ भूमि में चला गया।4 लेकिन पाणिनि (500 ई. पू.) के सूत्र (4.2.34) के भाष्य में पतंजलि ने स्पष्ट रूप से वासुदेव का अर्थ ईश्वर का नाम माना है।5 मेवाड़ के घोसुण्डी अभिलेख में संकर्षण एवं वासुदेव उपासना हेतु निर्मित मण्डप के चारों ओर एक प्राचीर बनवाने का उल्लेख मिलता है।6 वासुदेव के उपासक भागवत कहलाते थे। वैसे प्राचीन काल में विष्णु, नारायण और कृष्ण एवं राम का समन्वय होने के संकेत विभिन्न ग्रन्थों में मिलते हैं।7 मेगस्थनीज ने मथुरा क्षेत्र में वासुदेव की भक्ति लोकप्रिय होने के संकेत दिये हैं।8 मौर्याेतरकाल में वैष्णव धर्म राजस्थान में भागवत धर्म के नाम से लोकप्रिय हुआ। गुप्त सम्राटों के शासन काल में पुराण साहित्य रचा गया, जिनसे हमें विष्णु के अवतारों की जानकारी मिलती है।9 गीता10 ने भी प्रचारित किया कि जब-जब संसार में अधर्म का प्रसार हो जाता है तो उसे नष्ट करने धर्म की पुनःस्थापना के लिए ईश्वर अवतार लेता है। गुप्त काल तक विष्णु के दस अवतार प्रसिद्ध थे।11 इनमें से कुछ अवतारों का विवरण शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है।12 इन अवतारों में वराह और कृष्ण की पूजा का अधिक प्रचलन गुप्तकाल में हुआ। राम की पूजा का प्रारम्भ छठी शताब्दी ई. के बाद हुआ।13 अवतारों में बुद्ध का नाम सम्मिलित करने का कारण धार्मिक क्षेत्र में समन्वयकारी प्रवृत्ति का उत्थान होना मात्र था।
Keywords
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Citation
चौहान राजाओं का नव-वैष्णव धर्म को संरक्षण. डॉ. बलवीर चौधरी. 2019. IJIRCT, Volume 5, Issue 2. Pages 13-15. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=1902003